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An Indian Morning
Sunday January 7th, 2024 with Dr. Harsha V. Dehejia and Kishore "Kish" Sampat
An Indian Morning, celebrating and seeking the spirit of India thru sounds, stories, music & songs. लघु श्रृंखला "रस माधुरी" - नौ रस - RAS MADHURI - NAUV RAS

Namaste! And let us this morning touch a handful of earth for in it are our seeds and our hidden springs, our primal waters, the footholds of our rishis and our ancient rhythms; for it is after all prakriti, the source of life. Welcome to An Indian Morning. A-DR DEHEJIA’S MISC-20240107 27:33 01-MANGALACHARAN; HARI SHANKAR 02-MAATI KAHEY KUMHAR KO; KABIR BHAJAN; LAKSHMI SHANKAR 03-SHYAMA TERI BANSURI; SURDAS BHAJAN; PURSHOTAMDAS JALOTA 04-TAJ MAHEL MEIN AA JAANA; RAJENDRA MEHTA & NINA MEHTA; GOVIND PRASAD; PREM WARBARTONI 05-NUTACHEEN HAI GHAMEHI; YAHUDI KI LADKI-1933; K. L. SAIGAL; PANKAJ MULLICK; MIRZA GHALIB B-ANNOUNCEMENTS MISC-20240107 10:27 BACKGROUND MUSIC; BACKGROUND MUSIC: INSTRUMENTAL-RAAG BHUPAL TODI; PANDIT SHIV KUMAR SHARMA 01-AAYA NAYA SAAL RE CD MISC-20200105 TRACK#01 4:25 HAPPY NEW YEAR SONGS-2013; RAJENDER SHUKLA https://www.youtube.com/watch?v=HGSekeVpfrE हार्दिक अभिनंदन आप सबका, शुक्रिया, धन्यवाद और Thank You इस प्रोग्राम को सुनने के लिए। गुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है, सितारों ने आसमां से सलाम भेजा है। मुबारक हो आपको नया साल, भुल जाओ बिते हुए कल को। दिल में बसालो नव वर्ष को, मुस्कराओ चाहे जो भी हो पल। खुशियां लेकर आया है नव वर्ष 2024। हमने ये पैगाम भेजा है ‍Happy New Year!!!. मैं तो प्यार से तेरे पिया मांग सजाऊँगी....नौशाद का रचा ये शृंगार रस से भरपूर गीत है सभी भारतीय नारियों के लिए खास भाव या जज़्बात वह महत्वपूर्ण विशेषता है जो जीव जंतुओं को उद्‍भीद जगत से अलग करती है। संस्कृत में 'रस' शब्द का अर्थ भले ही स्वाद, जल, सुगंध या फलों के रस के इर्द-गिर्द घूमता हो, लेकिन 'रस' शब्द को जीव जगत के नौ भावों या जज़्बात के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ये वो नौ रस हैं जो हमारे मन का हाल बयान करते हैं। अगर हम इन नौ रसों के महत्व को अच्छी तरह समझ लें और किस रस को किस तरह से अपने में नियंत्रित रखना है, उस पर सिद्धहस्थ हो जाएँ, तो जीवन में सच्चे सुख की अनुभूति कर सकते हैं और हमारा जीवन सही मार्ग पर चल सकता है। 'An Indian Morning' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत आप सब का फिर एक बार इस महफ़िल में। आप सोच रहे होंगे कि मैं फ़िल्मी गीतों को छोड़ कर अचानक रस की बातें क्यों करने लगा। दरअसल, हमारे जो फ़िल्मी गीत हैं, वो ज़्यादातर कहानी के सिचुएशन के हिसाब से बनते हैं। और अगर कहानी है तो उसमें किरदार भी हैं, घटनाएँ भी हैं ज़िंदगी से जुड़े हुए, और तभी तो हर फ़िल्मी गीत में भी किसी ना किसी भाव का, किसी ना किसी जज़्बात का, किसी ना किसी रस का संचार होता ही है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना एक ऐसी शृंखला चलाई जाए जिसमें इन नौ रसों पर आधारित एक एक गीत सुनवाकर इन रसों से जुड़े कुछ तथ्यों से भी आपका परिचय करवाया जाए! क्या ख़याल है आपका! आइए शुरु करें नौ रसों पर आधारित नौ फ़िल्मी गीतों से सजी लघु शृंखला 'रस माधुरी'! वेदिक काल से जो नौ रस निर्दिष्ट किए गए हैं, उनके नाम हैं शृंगार, हास्य, अद्‍भुत, शांत, रौद्र, वीर, करुण, भयानक, विभत्स। आइए शुरुआत करते हैं शृंगार रस से। शृंगार रस ही वह रस है जिस पर सब से ज़्यादा गीत बनते हैं, क्योंकि यह वह रस है जिसमें है प्यार, पूजा, कला, सौंदर्य और आकर्षण। इसे रसों का राजा (या रानी) माना जाता है और इसी रस पर यह दुनिया टिकी हुई है ऐसी धारणा है। शृंगार शब्द का शाब्दिक अर्थ है सजना सँवरना, लेकिन जब शृंगार रस की बात करें तो इसका अर्थ काफ़ी विशाल हो जाता है और उपर लिखे तमाम भाव इससे जुड़ जाते हैं। यहाँ तक कि भक्ति भी शृंगार रस का ही अंग होता है। शृंगार के भाव के भी दो पहलू हैं - एक है संभोग शृंगार (मिलन) और एक है विप्रलम्भ शृंगार (विरह)। और वैसे भी शृंगार रस की बात हो, आदर्श भारतीय नारी और शृंगार की बात हो, ऐसे में लता जी की आवाज़-ओ-अंदाज़ से बेहतर इस रस के लिए और क्या हो सकती है। युं तो लता जी के गाए असंख्य शृंगार रस के गानें हैं जिनकी लिस्ट बनाने बैठें तो पता नहीं कितने दिन लग जाएँगे, लेकिन हमने इस कड़ी के लिए एक ऐसा गीत चुना है जो हमारे ख़याल इस रस की व्याख्या करने के लिए एक बेहद असरदार गीत है। और यह हम नहीं बल्कि महिलाएँ ख़ुद कह रही हैं। यह गाना एक आम भारतीय स्त्री की भावनाओं से जुड़ी हुई है। तो लीजिए, शृंगार रस से भरा हुआ लता जी की मीठी आवाज़ में सुनिए फ़िल्म 'साथी' का यह गीत, मजरूह - नौशाद की रचना। क्या आप जानते हैं... कि नौशाद साहब शिकार और मछली पकड़ने का बड़ा शौक रखते थे। शक़ील और मजरूह के साथ पवई झील में मछली पकड़ा करते थे। बाद में वे 'महाराष्ट्र स्टेट ऐंगलिंग एसोसिएशन' के अध्यक्ष भी रहे। 02-MEIN TO PYAR SE PIYA TERI MAANG SAJAOONGI RE CD MISC-20240107 TRACK#02 5:10 SAATHI-1968; LATA MANGESHKAR; NAUSHAD; MAJROOH SULTANPURI https://www.youtube.com/watch?v=XFUgCosWXMU अजीब दास्ताँ है ये.....अद्भुत रस में छुपी जीवन की गुथ्थियां जिन्हें सुलझाने में बीत जाती है उम्र सारी 'An Indian Morning' में हमने शुरु की है लघु शृंखला 'रस माधुरी' जिसके अंतर्गत हम चर्चा कर रहे हैं नौ रसों की। तो अब जो गीत हमने चुना है उसमें है अद्भुत रस की झलक। अद्भुत रस का अर्थ है वह भाव जिसमें समाया हुआ है आश्चर्य, कौतुहल, राज़। 'अद्भुत रस' कोई ऐसा रस नहीं है जिसे आप अपनी मर्ज़ी से अपने अंदर पैदा करें, बल्कि यह तो अपने आप ही पनपता है। अगर आप 'अद्भुत रस' का आनंद लेना चाहते हैं तो बस अपनी आँखें खोले रखिए ताकि ज़िंदगी के हर अनुभव से कुछ ना कुछ सीख मिले। किसी ने इस रस के बारे में ठीक ही कहा है कि "The feeling of Wonder comes when one recognizes one's own ignorance. By cultivating the right attitude towards the miracle of life, the Adbhuta Rasa can be a permanent companion." दोस्तों, तो हमें यकायक जो गीत ज़हन में आया है, वह है फ़िल्म 'दिल अपना और प्रीत पराई' का, "अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरु कहाँ ख़तम, ये मंज़िले हैं कौन सी, ना वो समझ सके ना हम"। शैलेन्द्र के जीवन दर्शन पर लिखे तमाम गीत, जिनके लिए वो जाने जाते रहे हैं, उनमें यह गीत भी एक ख़ास मुकाम रखता है। शंकर जयकिशन का सुपरहिट संगीत १९६० के इस फ़िल्म में गूँजा था। पश्चिमी रंग में रंगे इस संयोजन में सैक्सोफ़ोन और कॊयर (choir) शैली के कोरल सिंगिंग् का अद्भुत संगम सुनने को मिलता है। इसमें ताज्जुब की बात नहीं कि उस साल फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार शंकर जयकिशन को इसी फ़िल्म के गीतों के लिए मिला था। क्या आप जानते हैं... कि साल १९६० के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में 'दिल अपना और प्रीत पराई' फ़िल्म के दो गीत शामिल हुए थे जिनमें एक था फ़िल्म का शीर्षक गीत (छठे पायदान पर) और दूसरा गीत था "मेरा दिल अब तेरा ओ साजना" (१२-वीं पायदान पर)। यह वाक़ई "अद्भुत" बात है कि "अजीब दास्ताँ है ये" को कोई जगह नहीं मिली। 03-AJEEB DASTAAN HAI YE CD MISC-20240107 TRACK#03 4:48 DIL APNA AUR PREET PARAI-1960; LATA MANGESHKAR; SHANKAR-JAIKISHAN; SHAILENDRA https://www.youtube.com/watch?v=AU-hut9lGQ4 अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम.....जब अल्लाह और ईश्वर एक हैं तो फिर बवाल है किस बात का, शांति का सन्देश देता लता जी का ये भजन 'रस माधुरी' शृंखला की तीसरी कड़ी में बारी है शांत रस की। शांत रस मन का वह भाव है, वह स्थिति है जिसमें है सुकून, जिसमें है चैन, जिसमें है शांति। किसी भी तरह का हलचल मन को अशांत करती है। इसलिए यह रस तभी जागृत हो सकती है जब हम ध्यान और साधना के द्वारा अपने मन को काबू में रखें, हर चिंता को मन से दूर कर एक परम शांति का अनुभव करें। आजकल मेडिटेशन की तरफ़ लोगों का ध्यान बढ़ गया है। जिस तरह की भागदौड़ की ज़िंदगी आज का मनुष्य जी रहा है, एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़, जीवन में सफल बनने का प्रयास, और उस प्रयास में अगर किसी चीज़ को बलिवेदी पर चढ़ाया जा रहा है तो वह है शांति और सुकून। दोस्तों, शुरु शुरु में हमने यह सोचा था कि इस रस पर आधारित हम आपको फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' का गीत "ऐ दिल-ए-नादान" सुनवएँगे। इस गीत का जो संगीत है, जो ठहराव है, उससे मन शांत तो हो जाता है, लेकिन अगर इसके लफ़्ज़ों पर ग़ौर करें तो यह मन की व्याकुलता, और हलचल का ही बयान करता है। गाने का रीदम भले ही शांत हो, लेकिन ये शब्द एक अशांत मन से निकल रहे हैं। इसलिए शांत रस के लिए शायद यह गीत सटीक ना हो। इसलिए हमने गीत बदलकर फ़िल्म 'हम दोनों' का सुकूनदायक "अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम" कर दिया। आज भी बहुत से लोग समझते हैं कि यह एक ग़ैर फ़िल्मी पारम्परिक भजन है। बस यही है इस भजन की खासियत और साहिर लुधियानवी की भी, जिन्होंने इस अमर भजन की रचना की। यह भजन नंदा पर फ़िल्माया गया है जो मंदिर में बैठकर अन्य भक्तजनों के साथ गाती हैं। तो लीजिए दोस्तों, आप भी सुनिए और हमें पूरा विश्वस है कि अगर आपका मन अशांत है तो इसे सुन कर आपको शांति मिलेगी, सुकून मिलेगा। क्या आप जानते हैं... कि 'हम दोनों' फ़िल्म श्याम-श्वेत फ़िल्म थी, लेकिन जून २००७ में इसका रंगीन वर्ज़न जारी किया गया है। 04-ALLAH TERO NAAM ISHWAR TERO NAAM CD MISC-20240107 TRACK#04 3:45 HUM DONO-1961; LATA MANGESHKAR; JAIDEV; SAHIR LUDHIANAVI https://www.youtube.com/watch?v=CXuWxfmtmN4 चील चील चिल्लाके कजरी सुनाए.....हास्य रस में सराबोर होकर सुनिए ये गीत, हंसिये, हंसायिये और खुश रहिये 'रस माधुरी' शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। शृंगार, अद्भुत और शांत रस के बाद आज बारी हास्य रस की। हास्य रस, यानी कि ख़ुशी के भाव जो अंदर से हम महसूस करते हैं। बनावटी हँसी को हास्य रस नहीं कहा जा सकता। हास्य रस इतना संक्रामक होता है कि आप इस रस को अपने आसपास के लोगों में भी पल में आग की तरह फैला सकते हैं। सीधे सरल शब्दों में हास्य का अर्थ तो यही होता है कि ख़ुश होना, जो चेहरे पर हँसी या मुस्कुराहट के ज़रिए खिलती है, लेकिन जो शुद्ध हास्य होता है वह हम अपने अंदर बिना किसी कारण के ही महसूस करते हैं। और यह भाव तब उत्पन्न होती है जब हम यह समझ या अनुभूति कर लेते हैं कि ईश्वर या जीवन हम पर महरबान है। इस तरह का हास्य एक दैवीय रस होता है, जिसे एक दैवीय तृप्ति भी कह सकते हैं। हिंदी फ़िल्मों में शुरु से ही हास्य का बहुत बड़ा स्थान रहा है। पुराने ज़माने में प्रमुख नायक नायिका की जोड़ी के साथ साथ एक पैरलेल कॊमेडियन नायक - नायिका की जोड़ी भी फ़िल्म में चलती थी। लेकिन कुछ गिने चुने नायक ऐसे भी हुए जो ख़ुद एक हीरो होने के साथ साथ ज़बरदस्त कॊमेडियन आरटिस्ट भी रहे। दोस्तों, हिंदी फ़िल्म इतिहास में अगर हास्य रस की बात करें, तो हरफ़नमौला कलाकार किशोर कुमार से बेहतर नाम और क्या हो सकता है! एक ज़बरदस्त गायक तो वो थे ही, साथ ही अभिनय में भी माशाल्लाह! उनके गाए इन तमाम गीतों में से आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह है सन् १९६२ की फ़िल्म 'हाफ़ टिकट' का, और गीत के बोल हैं "चील चील चिल्लाके कजरी सुनाए, झूम झूम कौवा भी ढोलक बजाए", जो फ़िल्म में भी उन्होंने ही गाया है और साथ में प्राण साहब भी हैं। गीतकार शैलेन्द्र और संगीत सलिल चौधरी का। इस गीत के बारे में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, बस सुनिए और खिलखिलाइए। क्या आप जानते हैं... कि १९ नवंबर १९२५ को सोनारपुर, बंगाल में जन्मे सलिल चौधरी के पिता आसाम के चाय बागानों में डॊक्टर थे। पिता के पास पाश्चात्य संगीत का बड़ा संग्रह था, और इस तरह से सलिल दा का बचपन असम, बंगाल और बिहार के मज़दूरों के लोकगीतों के साथ साथ इस विशाल ख़ज़ाने को आत्मसात करते हुए बीता 05-CHIL CHIL CHILLAKE KAJARI SUNAAYE CD MISC-20240107 TRACK#05 3:35 HALF TICKET-1962; KISHORE KUMAR; SALIL CHAUDHARY; SHAILENDRA https://www.youtube.com/watch?v=yBZagn-PGNU नफरत की दुनिया को छोडकर प्यार की दुनिया में, खुश रहना मेरे यार.... करुण रस और रफ़ी साहब की आवाज़ हास्य रस के बाद ठीक विपरीत दिशा में जाते हुए करुण रस की बारी। 'रस माधुरी' शृंखला में आज ज़िक्र करुण रस का। करुण रस, यानी कि दुख, सहानुभूति, हमदर्दी, जो उत्पन्न होती है लगाव से, किसी वस्तु या प्राणी के साथ जुड़ाव से। जब यह लगाव हमसे दूर जाने लगता है, बिछड़ने लगता है, तो करुण रस से मन भर जाता है। करुण रस आत्म केन्द्रित होने का भी कभी कभी लक्षण बन जाता है। इसलिए शास्त्र में कहा गया है कि करुण रस को आत्मकेन्द्रित दुख से ज़रूरतमंदों के प्रति हमदर्दी जताने में परिवर्तित कर दिया जाए। करुण रस मनुष्य के जीवन के हर पड़ाव में आता है। जवान होते बच्चों में देखा गया है कि जब वो उपेक्षित महसूस करते हैं तो दूसरों से हमदर्दी की चाह रखने लगते हैं। जब इंसान बूढ़ा होने लगता है तो अलग तरह का करुण रस होता है कि जिसमें उसे उसके जीवन भर का संचय भी बेमतलब लगने लगता है। मृत्यु के निकट आने पर करुण रस अपने चरम पर पहूँच जाता है। लेकिन अगर इंसान शाश्वत आत्मा में विश्वास रखता है तो इस समय भी वो करुण रस से बच सकता है और जीवन के अंतिम क्षण तक आनंद ले सकता है इस ख़ूबसूरत जीवन का। दोस्तों, हिंदी फ़िल्मों में करुण रस के गीतों की कोई कमी नहीं है। हमने जो गीत चुना है वह है मोहम्मद रफ़ी साहब का गाया फ़िल्म 'हाथी मेरे साथी' का "नफ़रत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में ख़ुश रहना मेरे यार"। 'हाथी मेरे साथी' १९७१ की फ़िल्म थी। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने जिस तरह से अपने संगीत के माध्यम से इस गीत में करुण रस का संचार किया है, और आनंद बक्शी साहब ने जिस तरह के बोल लिखे हैं इस गीत में, इसे सुन कर शायद ही कोई होगा जिसकी आँखें नम ना हुई होंगी। यहाँ पर यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि इस गीत के लिए Society for Prevention of Cruelty to Animals ने आनंद बक्शी को पुरस्कृत किया था, जो अपने आप में अकेला वाक्या है। लीजिए, करुण रस पर आधारित इस गीत को सुनिए क्या आप जानते हैं... कि 'हाथी मेरे साथी' हिंदी का पहला ऐल्बम था जिसने बिक्री के लिए विक्रय डिस्क जीता, जो था एच. एम. वी का रजत डिस्क। 06-NAFRAT KI DUNIYA KO CHHODKAR CD MISC-20240107 TRACK#06 4:18 HAATHI MERE SAATHI-1971; MOHAMMAD RAFI; LAXMIKANT-PYARELAL; ANAND BAKSHI https://www.youtube.com/watch?v=z5YriVMF2pU 97-ANTMEIN-SIGNOFF – 2:04 BACKGROUND MUSIC: INSTRUMENTAL- AJIB DASTAN HAI YE; AJAY CHAKRABORTY; 3:53 https://www.youtube.com/watch?v=PmgVX-0W3vk ---------------------------------------------------------- अंत मे छोटी सी बात ‘An Indian Morning’ की तरफसे: ---------------------------------------------------------- “A man too busy to take care of his health is like a mechanic too busy to take care of his tools.” -Spanish Proverb “अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए समय न निकालने वाला व्यक्ति ऐसे मिस्त्री के समान होता है तो अपने औजारों की ही देखभाल में व्यस्त रहता है।” -स्पेन की कहावत ---------------------------------------------------------- हमारा आपके साथ आज यहीं तक का सफर था. तो चलिए आपसे अब हम विदा लेते है. अगली मुलाकात तक खुश रहिये, स्वस्थ रहिये और हाँ An Indian Morning पर हमसे मिलते रहिये. हंसते रहिये, क्योंकि हंसना निशुल्क है और एक सुलभ दवा है। Well, that's all the time we have with you today! We thank you and hope you have enjoyed our company on this Indian Morning! Please join us next Sunday from 10:00 AM till 11:30 AM for another edition (#2552). ‘Seeking the Spirit of India’ through sounds, stories, music & songs with Dr. Harsha Dehejia and Rakesh Misra, I am Kishore Sampat wishing you a wonderful week ahead! STAY safe STOP the spread SAVE lives! STAY TUNED FOR “MUSIC FROM THE GLEN” जिसका मन मस्त है..! उसके पास समस्त है..! आप स्वस्थ रहे, सदा मस्त रहे आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो, नमस्कार! THE END समाप्त
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