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An Indian Morning
Sunday March 11th, 2018 with Dr. Harsha V. Dehejia and Kishore "Kish" Sampat
An Indian Morning celebrates not only the music of India but equally its various arts and artisans, poets and potters, kings and patriots. The first 30 minutes of the program features classical, religious as well as regional and popular music. The second

An Indian Morning celebrates not only the music of India but equally its various arts and artisans, poets and potters, kings and patriots. The ethos of the program is summarized by its signature closing line, "Seeking the spirit of India, Jai Hind". एक बार फिर हार्दिक अभिनंदन आप सबका, शुक्रिया, घन्यावाद और Thank You इस प्रोग्राम को सुनने के लिए। पायलिया बांवरी मोरी....सूने महल में नाचती रक्कासा के स्वरों में राग मारवा “An Indian Morning” पर जारी श्रृंखला “दस थाट, दस राग और दस गीत” के नए सप्ताह में सभी रसिकों का मैं किशोर संपट एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। आधुनिक उत्तर भारतीय संगीत में राग-वर्गीकरण के लिए प्रचलित दस थाट प्रणाली पर केन्द्रित इस श्रृंखला में अब तक आप कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव और पूर्वी थाट का परिचय प्राप्त कर चुके हैं। आज की कड़ी में हम “मारवा” थाट पर चर्चा करेंगे। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे॒, ग, म॑, प, ध, नि । राग मारवा, “मारवा” थाट का आश्रय राग है, जिसमे ऋषभ कोमल और मध्यम तीव्र होता है किन्तु पंचम वर्जित होता है। “मारवा” थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- पूरिया, साजगिरी, ललित, सोहनी, भटियार, विभास आदि। इस राग का गायन-वादन दिन के चौथे प्रहर में उपयुक्त माना जाता है। राग मारवा का प्रयोग हमारी फिल्मों में कम ही हुआ है। हिन्दी फिल्मों में रागों पर आधारित सर्वाधिक गीतों की रचना करने वाले संगीतकार के रूप में नौशाद अली का नाम सर्वोपरि है। १९६६ में प्रदर्शित फिल्म ‘साज और आवाज़’ में संगीतकार नौशाद ने राग “मारवा” के स्वरों का सहारा लेकर एक अनूठा नृत्य-गीत स्वरबद्ध किया। अनूठा इसलिए कि यह गीत श्रृंगार रस प्रधान है और राग मारवा की प्रवृत्ति गम्भीरता और उदासी का भाव उत्पन्न करने में सहायक होता है। फिल्म “साज और आवाज़” का यह गीत- “पायलिया बावरी मोरी...” अभिनेत्री सायरा बानो के नृत्य पर फिल्माया गया था। यह गीत तीनताल और कहरवा तालों में निबद्ध किया गया है। गीतकार खुमार बाराबंकवी के शब्दों को लता मंगेशकर ने अपने सुरों से सजाया है। लीजिए, आप भी सुनिए, यह मधुर गीत- 01-PAYALIYA BANWARI MORI CD MISC-20180311 TRACK#01 7:52 SAAZ AUR AWAAZ-1966; LATA MANGESHKAR; NAUSHAD; KHUMAR BARABANKAVI https://www.youtube.com/watch?v=kwTVgTcxUBI वो एक दोस्त मुझको खुदा सा लगता है.....सुनेंगे इस गज़ल को तो और भी याद आयेंगें किशोर दा “An Indian Morning” के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ। आज के दिन जब ८० के दशक के किशोर दा की गाई एक बहुत ही कम सुनी लेकिन बेहद सुंदर ग़ज़ल को याद किया जाए। यह फ़िल्म थी 'सुर्ख़ियाँ' जो आयी थी सन् १९८५ में। यह एक समानांतर फ़िल्म थी जिसका निर्माण अनिल नागरथ ने किया था और निर्देशक थे अशोक त्यागी। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नसीरुद्दिन शाह, मुनमुन सेन, सुरेश ओबेरॊय, रामेश्वरी, अरुण बक्शी, ब्रह्म भारद्वाज, कृष्ण धवन, गुलशन ग्रोवर, एक. के. हंगल, पद्मिनी कपिला, भरत कपूर, पिंचू कपूर, कुलभूषण खरबंदा, विनोद पाण्डेय, सुधीर पाण्डेय, आशा शर्मा और दिनेश ठाकुर। ख़ैर, बात करते हैं किशोर कुमार की गायी इस फ़िल्म की उस ग़ज़ल की जो आज हम आपको सुनवाने जा रहे हैं। "वो एक दोस्त जो मुझको ख़ुदा सा लगता है, बहुत क़रीब है फिर भी जुदा सा लगता है"। क्या ख़ूब लिखा है इंदीवर साहब ने और संगीत तैयार किया है समानांतर सिनेमा के जाने माने संगीतकार वनराज भाटिया। आज “An Indian Morning” में पहली बार उनका संगीत गूंज रहा है। क्या आप जानते हैं... कि वनराज भाटिया मुम्बई के नेपिएन्सी रोड के जिस रोंग्टा हाउस में रहते हैं, वह इमारत ना केवल ३०० साल पुरानी है, बल्कि उसमें किसी ज़माने में 'सागर मूवीटोन' हुआ करता था। बाद में अभिनेता मोतीलाल, अभिनेत्री सबिता देवी और जाने माने रेकॊर्डिस्ट कौशिक साहब भी यहीं पर रह चुके हैं। 02-WOH EK DOST MUJHKO KHUDA SA LAGGTA HAI CD MISC-20180311 TRACK#02 3:55 SURKHIYON-1985; KISHORE KUMAR; VANRAJ BHATIA; INDEEVAR https://www.youtube.com/watch?v=46gwYzD94fk बोले तुम ना मैंने कुछ कहा -बातों बातों में १९७९ 6 मार्च 2018 को जानीमानी अभिनेत्री शम्मी (शम्मी आंटी) का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। एक सशक्त अभिनेत्री, एक मिलनसार इंसान, और एक ख़ूबसूरत सितारा, यानी कि शम्मी आंटी। जी हाँ, प्यार से लोग उनके नाम के साथ "आंटी" लगाते हैं। शम्मी आंटी ने शुरुआत बतौर फ़िल्म नायिका की थीं, फिर आगे चल कर चरित्र अभिनेत्री और फिर टेलीविज़न के परदे पर भी ख़ूब लोकप्रियता हासिल की। अधिकतर कलाकारों का संघर्ष जहाँ उनके अरिअर के शुरुआती समय में होता है, वहाँ शम्मी जी का संघर्ष उस समय शुरु हुआ जब वो अपने करिअर के शीर्ष पर थीं। शम्मी आंटी का असली नाम था नरगिस रबाड़ी। मात्र तीन वर्ष की आयु में पिता को खोने के बाद, उनकी माँ ने धार्मिक कार्यक्रमों में खाना बनाने का काम कर के नरगिस और उनकी बहन मणि की परवरिश की। 13 वर्ष की आयु में अपनी माँ का हाथ बंटाने के लिए नरगिस ने दवाई के कारखाने में दवाई पैकिंग् करने की नौकरी कर ली जिसके लिए उन्हें 100 रुपये मासिक वेतन मिलते थे। फ़िल्मों में उनका आना अचानक ही हुआ। शेख़ मुख्तार अपनी अगली फ़िल्म के लिए दूसरी नायिका की तलाश कर रहे थे जिसमें पहली नायिका के रूप में बेगम पारा का चयन हो चुका था। जब चिनू मामा ने नरगिस रबाड़ी को यह बात बताई तो वो अपनी क़िस्म्त आज़माने के लिए तैयार हो गईं। स्क्रीन टेस्ट में पास भी हो गईं लेकिन एक शर्त पर कि वो अपना नाम बदल लेंगी क्योंकि नरगिस के नाम से एक सफल अभिनेत्री इंडस्ट्री में मौजूद हैं। इस तरह से फ़िल्म के निर्देशक तारा हरिश ने उनका नाम रख दिया "शम्मी" और यह फ़िल्म थी “उस्ताद पेड्रो” जो 1949 में बन कर प्रद्रशित हुई। 18 वर्ष की आयु में फ़िल्म साइन कर यह फ़िल्म उनके 20 वर्ष की आयु में प्रदर्शित हुई। बॉक्स ऑफ़िस पर फ़िल्म कामयाब सिद्ध हुई। तारा हरिश गायक मुकेश द्वारा निर्मित फ़िल्म “मल्हार” भी निर्देशित कर रहे थे। इस फ़िल्म में उन्होंने शम्मी को बतौर मुख्य नायिका चुना और इस फ़िल्म के नायक बने ख़ुद मुकेश। “मल्हार” के सुमधुर हिट गीतों ने शम्मी को स्टार का दर्जा दिलवा दिया। शम्मी की तीसरी फ़िल्म आई 1952 में - ’संगदिल’। दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ किया हुआ यह फ़िल्म ख़ास नहीं चली। लेकिन के. आसिफ़ की हिट फ़िल्म ’मुसाफ़िरख़ाना’ की सफलता के बाद शम्मी को एक के बाद एक फ़िल्मों के ऑफ़र आते चले गए। शम्मी की ख़ास बात यह थी कि उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि उन्हें नायिका के ही रोल चाहिए। नायिका, दूसरी नायिका, खलनायिका, हास्य और अन्य चरित्र भूमिकाओं में लगातार फ़िल्में करती चली गईं। 1970 तक उनके अभिनय से सजी महत्वपूर्ण फ़िल्में रहीं ’इलज़ाम’, ’पहली झलक’, ’बंदिश’, ’आज़ाद’, ’हलाकू’, ’सन ऑफ़ सिन्दबाद’, ’राज तुलक’, ’ख़ज़ांची’, ’घर संसार’, ’आख़िरी दाव’, ’कंगन’, ’भाई-बहन’, ’दिल अपना और प्रीत पराई’, ’हाफ़ टिकट’, ’इशारा’, ’जब जब फूल खिले’, ’प्रीत न जाने रीत’, ’आमने सामने’, ’उपकार’, ’इत्तेफ़ाक़’, ’साजन’, ’डोली’, ’राजा साब’ और ’दि ट्रेन’ प्रमुख। शम्मी आंटी एक ऐसी शख़्सियत हैं जिन्होंने अपनी सहनशीलता, संघर्ष करने के जसबे और हर बार अपने आप को मुसीबतों से बाहर निकालने के दृढ़ संकल्प का परिचय एक बार नहीं बल्कि बार बार दिया। अभी 6 मार्च को शम्मी आंटी हम सबको छोड कर चली गईं और इसके ठीक दो दिन बाद 8 मार्च को हमने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। इस विशेष दिन पर शम्मी जी बार बार याद आती रहीं। आख़िर शम्मी आंटी जैसी महिला बहुत कम पैदा होती हैं, है ना? उनके अभिनय से सजी फ़िल्में और धारावाहिक आने वाली पीढ़ियों को लम्बे समय तक प्रेरित करते रहेंगे अच्छा और सहज अभिनय करने के लिए, और यह भी सिखाते रहेंगे कि किसी भी अभिनेत्री को टाइप-कास्ट ना होकर हर तरह के किरदार निभाने रहने चाहिए। यही एक सच्चे कलाकार की पहचान है! “An Indian Morning” की तरफ़ से हम शम्मी आंटी को देते हैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि। 03-BADE ARMANON SE RAKHA HAI YEH PEHLA KADAM CD MISC-20180311 TRACK#03 3:19 MALHAR-1951; LATA MANGESHKAR, MUKESH; ROSHAN; INDEEVAR https://www.youtube.com/watch?v=D7rI3NGW8aM मचल के जब भी आँखों से-गृह प्रवेश १९७९ एक क्रिटिकली ऐक्लेडम्ड फिल्म से गीत सुनते हैं. ये विशेष किस्म की या क्रिटिकली ऐक्लेडम्ड फ़िल्में वे होती हैं जो अलग हट के होती हैं और बॉक्स ऑफिस से भी अलग हट के खड़ी मिलती हैं. जिनका कथानक समझ ना आये उनको भी क्रिटिकली ऐक्लेडम्ड घोषित कर दिया जाता है. ये जुमला ज्यादा पुराना नहीं है. इसका प्रयोग सन २००० के बाद से होने लगा है. फिल्म में संजीव कुमार और शर्मिला टैगोर ने अपने अपने केलिबर के हिसाब से अभिनय किया है. कथानक अंग्रेजी फिल्मों की तरह कुछ धीमा सा है जिसकी भारतीय दर्शकों को आदत नहीं पड़ी है अभी तक. 04-MACHAL KE JABHI BHI AANKHON SE CD MISC-20180311 TRACK#04 3:39 GRIH PRAVESH-1979; BHUPINDER SINGH; KANU ROY; GULZAR https://www.youtube.com/watch?time_continue=1&v=cZd14h3TLIA मैं तस्वीर उतारता हूँ-हीरा पन्ना १९७३ हिंदी फिल्म का हीरो एक प्रतिभावान जंतु होता है जो किसी भी पेशे पर हाथ साफ़ कर सकता है. ज़रूरत पड़ने पर पहलवानी भी कर सकता है तो कपडे पर प्रेस भी. गीत के पहली दो पंक्ति से ये अर्थ लगाया जा सकता है कि फोटो खींचने के बाद नायक केश कर्तन भी करता है लगता है उसका कोई सैलून भी है. आगे की पंक्तियों का अर्थ आप स्वयं समझें. सन १९७३ की फिल्म हीरा पन्ना से एक गीत सुनते हैं देव आनंद पर फिल्माया गया. किशोर कुमार ने इसे गाया है. आनंद बक्षी की आनंददायी रचना है जिसकी धुन तैयार की है आर डी बर्मन ने. 05-MEIN TASVEER UTAARTA HOON CD MISC-20180311 TRACK#05 5:31 HEERA-PANNA 1973; KISHORE KUMAR; R.D.BURMAN; ANAND BAKSHI https://www.youtube.com/watch?time_continue=70&v=d4CnfEQNKkk मित्रों, आज हम ’An Indian Morning’ में फिर से पिछले साल पर नज़र डाल रहे हैं। पिछले साल की फ़िल्मों के कुछ अच्छे गीतों को दोबारा सुन लिया जाए। इस लिए हम वर्ष 2017 के 25 श्रेष्ठ गीतों की सूची पर पहुँचे। ये 25 गीत किसी पायदान रूपी क्रम में नहीं सजाए गए हैं, और ना ही हम किसी काउन्टडाउन के स्वरूप में इन्हें पेश कर रहे हैं। बस यूं समझ लीजिए कि ’An Indian Morning’ द्वारा चुने गए वर्ष 2017 की ये श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। तो हर हप्ते हम सुनवाऐंगे दो या तीन बीते बरस 2017 के श्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्मी गीत। तेरी मेरी इक कहानी है - Ik Kahani पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी आजकल फिल्मों के इतर इकलौते गीत रिलीज़ किए जा रहे हैं और उनमें कुछ खासे लोकप्रिय भी हुए हैं। ये गीत एक हल्का फुल्का रोमांटिक गीत है जिसे गजेंद्र वर्मा में गाया, लिखा और संगीतबद्ध किया है। गजेंद्र वर्मा यूँ तो हरियाणा के सिरसा से ताल्लुक रखते हैं पर वे पहली बार 2011 में अजीबो गरीब वाक़ये के कारण चर्चा में आए। इंटरनेट पर एक गीत Emptiness रोहन राठौड़ के नाम से आया जिसमें दावा किया गया कि IIT गुवहाटी के इस छात्र ने ये गीत अपनी प्रेमिका के ठुकराए जाने पर लिखा था और गीत रिकार्ड करने के पन्द्रह दिनों बाद कैंसर की बीमारी की वज़ह से चल बसा। अब कहानी और इस गीत का दर्द सोशल मीडिया पर यूँ गूँजा कि देखते ही देखते ये लाखों लोगों की पसंद बन गया। बाद में पता चला कि रोहन राठोड़ के नाम से तो IIT गुवहाटी में कोई है ही नहीं और इस के असली रचयिता गजेंद्र हैं। कुछ लोगों ने इसे उनका पब्लिसिटी स्टंट माना पर गजेंद्र ने आरापों को खारिज करते हुए इसे किसी की शरारत बताया। बहरहाल गजेंद्र उसके बाद गाहे बगाहे हिंदी फिल्मों में बतौर संगीत देते रहें हैं और ख़ुद के सिंगल्स भी निकालते हैं। उनकी मुलायम आवाज़ हिंदी व अंग्रेजी दोंनों में गाए रूमानी गीतों में खासा असर छोड़ती है। तो आइए सुनते हैं ये गाना जिसके शब्द तो मामूली हैं पर धुन ऐसी कि गुनगुनाने का मन करे। वैसे भी जिसके साथ आपकी कहानी जम गयी हो उसके लिए ये कहना तो पसंद करेंगे ना आप... 06-TERI MERI IK KAHANI CD MISC-20180311 TRACK#06 3:26 IK KAHANI-2017; GAJENDRA VERMA https://www.youtube.com/watch?time_continue=1&v=Qsn7w0WS7HQ ताज़ा - सुरताल ‘Presenting Sonu Ke Titu Ki Sweety's house party anthem "Bom Diggy Diggy" composed by Zack Knight. The song features Kartik Aaryan and Sunny Singh and is sung by Zack Knight and Jasmin Walia. 07-BOM DIGGY DIGGY BOM BOM CD MISC-20180311 TRACK#07 3:22 SONU KE TITU KI SWEETY-2018; ZACK KNIGHT, JASMIN WALIA; ZACK KNIGHT; ZACK KNIGHT, KUMAAR https://www.youtube.com/watch?v=yIIGQB6EMAM&t=0s&list=PL4uUU2x5ZgR1JOlcY9SZB94MW6fBE8ovU&index=2 Presenting Yo Yo Honey Singh’s latest offering “Dil Chori” from “Sonu Ke Titu Ki Sweety” starring Kartik Aaryan, Nushrat Bharucha and Sunny Singh. Enjoy this remake recreation of Hans Raj Hans’ original song “Dil Chori Sada Ho Gaya”. 08-DIL CHORI SADA HO GAYA KI KARIYE CD MISC-20180311 TRACK#08 3:31 SONU KE TITU KI SWEETY-2018; YO YO HONEY SINGH, SIMAR KAUR, ISHERS; YO YO HONEY SINGH https://www.youtube.com/watch?v=xWi8nDUjHGA&list=PL4uUU2x5ZgR1JOlcY9SZB94MW6fBE8ovU&index=3 THE END समाप्त
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