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An Indian Morning
Sunday February 21st, 2016 with Dr. Harsha V. Dehejia and Kishore "Kish" Sampat
Devotional, Classical, Ghazals, Folklore, Old/New Popular Film/Non-Film Songs, Community Announcements and more...

Celebrating not only the "Music of India", but equally so its varied rich art, culture and people while maintaining the "SPIRIT OF INDIA". एक बार फिर हार्दिक अभिनंदन आप सबका, शुक्रिया, घन्यावाद और Thank You इस प्रोग्राम को सुनने के लिए। जागो मोहन प्यारे...राग भैरव पर आधारित ये अमर गीत दस थाट, दस राग और दस गीत’ शृंखला # 744- जागो मोहन प्यारे... “दस थाट, दस राग और दस गीत” श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। आपको मालूम ही है कि इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्यति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। आज हमारी चर्चा का थाट है- “भैरव”। इस थाट में प्रयोग किये जाने वाले स्वर हैं- सा, रे॒, ग, म, प, ध॒, नि । अर्थात ऋषभ और धैवत स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। थाट “भैरव” का आश्रय राग “भैरव” ही है। राग “भैरव” के आरोह के स्वर हैं- सा, रे, ग म, पध, नि, सां तथा अवरोह के स्वर- सां, नि, ध, पमग, रे, सा होते हैं। इस राग का गायन-वादन समय प्रातःकाल होता है। “भैरव” थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग होते हैं- “रामकली”, “गुणकली”, “कलिंगड़ा”, “जोगिया”, “विभास” आदि। राग “भैरव” पर आधारित फिल्म-गीतों में से एक अत्यन्त मनमोहक गीत आज हमने चुना है। १९५६ में राज कपूर ने महत्वाकांक्षी फिल्म “जागते रहो” का निर्माण किया था। इस फिल्म के संगीतकार सलिल चौधरी का चुनाव स्वयं राज कपूर ने ही किया था, जबकि उस समय तक शंकर-जयकिशन उनकी फिल्मों के स्थायी संगीतकार हो चुके थे। फिल्म “जागते रहो” बांग्ला फिल्म “एक दिन रात्रे” का हिन्दी संस्करण था और बांग्ला संस्करण के संगीतकार सलिल चौधरी को ही हिन्दी संस्करण के संगीत निर्देशन का दायित्व दिया गया था। सलिल चौधरी ने इस फिल्म के गीतों में पर्याप्त (sufficient) विविधता रखी। इस फिल्म में उन्होने एक गीत “जागो मोहन प्यारे, जागो...” की संगीत रचना “भैरव” राग के स्वरों पर आधारित की थी। शैलेन्द्र के लिखे गीत जब लता मंगेशकर के स्वरों में ढले, तब यह गीत हिन्दी फिल्म संगीत का मीलस्तम्भ बन गया। आइए, आज हम राग “भैरव” पर आधारित, फिल्म “जागते रहो” का यह गीत सुनते हैं- 01-Jago Mohan Pyare CD MISC-20160221 Track#01 6:13 JAGTE RAHO-1956; Lata Mangeshkar; Salil Choudhary; Shailendra दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी...जब स्वीट सिक्सटीस् में परवान चढा प्रेम 'एक मैं और एक तू' शृंखला # 554- दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी... जीव जगत की तमाम अनुभूतियों में सब से प्यारी, सब से सुंदर, सब से सुरीली, और सब से मीठी अनुभूति है प्रेम की अनुभूति, प्यार की अनुभूति। यह प्यार ही तो है जो इस संसार को अनंतकाल से चलाता आ रहा है। ज़रा सोचिए तो, अगर प्यार ना होता, अगर चाहत ना होती, तो क्या किसी अन्य चीज़ की कल्पना भी हम कर सकते थे! फिर चाहे यह प्यार किसी भी तरह का क्यों ना हो। मनुष्य का मनुष्य से, मनुष्य का जानवरों से, प्रकृति से, अपने देश से, अपने समाज से। दोस्तों, यह 'An Indian Morning' की महफ़िल है, जो बुना हुआ है फ़िल्म संगीत के तार से। और हमारी फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों का केन्द्रबिंदु भी देखिए प्रेम ही तो है। प्रेमिक-प्रेमिका के प्यार को ही केन्द्र में रखते हुए यहाँ फ़िल्में बनती हैं, और इसलिए ज़ाहिर है कि फ़िल्मों के ज़्यादातर गानें भी प्यार-मोहब्बत के रंगों में ही रंगे होते हैं। 'An Indian Morning' पर आप सुन रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर से चु्ने हुए कुछ सदाबहार युगल गीत 'एक मैं और एक तू' लघु शृंखला के अंतर्गत। यह तो सच है कि केवल दस गीतों में हम सुनहरे दौर के सदाबहार युगल गीतों की फ़ेहरिस्त को समेट नहीं सकते। यह बस एक छोटी सी कोशिश है इस विशाल समुंदर में से कुछ दस मोतियाँ चुन लाने की जो फ़िल्म संगीत के बदलते मिज़ाज को दर्शा सके, कि किस तरह से ३० के दशक से लेकर ८० के दशक तक फ़िल्मी युगल गीतों का मिज़ाज, उनका रूप रंग बदला। ३०, ४० और ५० के दशकों से एक एक गीत सुनने के बाद आज हम क़दम रख रहे हैं ६० के दशक में। ६० का दशक, जिसे हम 'स्वीट सिक्स्टीज़' भी कहते हैं, और इस दशक में ही सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीत बनें हैं। इसलिए हम इस दशक से एक नहीं बल्कि तीन तीन युगल गीत आपको एक के बाद एक सुनवाएँगे। इन गीतों का आधार हमने लिया है उन तीन गायिकाओं का जो इस दशक में सब से ज़्यादा सक्रीय रहे। ये गायिकाएँ हैं लता मंगेशकर, आशा भोसले और सुमन कल्याणपुर। आज के प्रस्तुत है आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में फ़िल्म 'कश्मीर की कली' का सदाबहार युगल गीत "दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी"। युं तो यह १९६४ की फ़िल्म है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है जैसे इस फ़िल्म के गीतों पर वक़्त की ज़रा सी भी आंच नहीं लग पायी है। आज भी इस फ़िल्म के तमाम गानें उसी रूप में ब-दस्तूर बजते चले जा रहे हैं जैसे फ़िल्म के प्रदर्शन के दौर में बजे होंगे। ओ. पी. नय्यर के ६० के दशक की शायद यह सफलतम फ़िल्म रही होगी। शम्मी कपूर, शर्मीला टैगोर और नज़ीर हुसैन अभिनीत इस फ़िल्म के गीत लिखे थे एस.एच. बिहारी साहब ने। शक्ति दा, यानी शक्ति सामंत की यह फ़िल्म थी । आज इस गीत के बारे में बस यही कहना चाहते हैं कि इसके मुखड़े का जो धुन है, वह दरअसल नय्यर साहब ने एक पीस के तौर पर "आँखों ही आँखों में इशारा हो गया" गीत के इंटरल्युड म्युज़िक में किया था। यह १९५६ की फ़िल्म 'सी.आइ.डी' का गीत है, और देखिये इसके ८ साल बाद इस धुन का इस्तमाल नय्यर साहब ने दोबारा किया और यह गीत एक माइलस्टोन बन गया, ना केवल उनके करीयर का बल्कि फ़िल्म संगीत के धरोहर का भी। तो आइए अब इस गीत का आनंद उठाते हैं। रुत तो नहीं है सावन की, लेकिन ऐसे मधुर गीतों की बौछार का तो हमेशा ही स्वागत है, है न! क्या आप जानते हैं... कि 'कश्मीर की कली' फ़िल्म साइन करने के वक़्त शर्मीला टैगोर की उम्र केवल १४ वर्ष थी। 02-Diwana Hua Badal, Sawan Ki Ghata Chhayi CD MISC-201600221Track#02 5:53 KASHMIR KI KALI-1964; Mohammad Rafi, Asha Bhosle; O.P.Nayyar; S.H.Bihari जा जा जा रे बेवफा...मजरूह साहब ने इस गीत के जरिये दर्शाये जीवन के मुक्तलिफ़ रूप “...और कारवाँ बनता गया” शृंखला # 664- जा जा जा रे बेवफा... '...और कारवाँ बनता गया', गीतकार व शायर मजरूह सुल्तानपुरी को समर्पित 'An Indian Morning' की इस लघु शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। मजरूह साहब पर एक किताब प्रकाशित हुई है जिसे उनके दो चाहनेवालों नें लिखे हैं। ये दो शख़्स हैं अमेरीका निवासी भारतीय मूल के बैदर बख़्त और उनकी अमरीकी सहयोगी मारीएन एर्की। इन दो मजरूह प्रशंसकों नें उनकी ग़ज़लों को संकलित कर एक किताब के रूप में प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है 'Never Mind Your Chains'। यह शीर्षक मजरूह साहब के ही लिखे एक शेर से आया है - "देख ज़िदान के परे, रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार, रक्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख"। अर्थात् चमन खिला हुआ है पिंजरे के ठीक उस पार, अगर नाच उठना है तो फिर पांव की बेड़ियों की तरफ़ न देख, never mind your chains। थोड़ा और क़रीब से देखा जाये तो उनकी यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल उनके करीयर पर भी लागू होती है। उनका कभी न रुकने, कभी न हार स्वीकारने की अदा, लाख पाबंदियों के बावजूद उन्हें न रोक सकी, और आज उन्होंने एक अमर शायर व गीतकार के रूप में इतिहास में अपनी जगह बना ली है। दोस्तों, चर्चा जारी है मजरूह साहब के लिखे ५० के दशक के गीतों की। यह सच है कि इस दशक में मजरूह नें 'आर पार', 'दिल्ली का ठग', 'चलती का नाम गाड़ी', 'नौ दो ग्यारह', 'सी.आइ.डी', 'पेयिंग् गेस्ट' और 'तुमसा नहीं देखा' जैसे फ़िल्मों में गीत लिखकर एक व्यावसायिक हल्के फुल्के गीतकार के रूप में अपने आप को प्रस्तुत किया, जहाँ दूसरी तरफ़ उनके समकालीनों में साहिर, प्रदीप, कैफ़ी आज़्मी, भरत व्यास और शैलेन्द्र जैसे गीतकार स्तरीय काम कर रहे थे। बावजूद इसके, मजरूह नें अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और इसका नतीजा है कि गीतकारों में वो पहले व अकेले गीतकार हुए जिन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नौशाद, अनिल बिस्वास और मदन मोहन के बाद आज हम जिस संगीतकार की रचना लेकर आये हैं, उस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें लम्बी पारी खेली, और सिर्फ़ लम्बी ही नहीं, बेहद सफल भी। ये थे ओ. पी. नय्यर साहब। साल, १९५४ में, इस जोड़ी की फ़िल्म 'आर-पार' नें जैसे चारों तरफ़ तहल्का मचा दिया। गायिका गीता दत्त, जो उन दिनों ज़्यादातर भक्तिमूलक और दर्दीले गीत ही गाती चली आ रहीं थीं, उनकी गायन क्षमता को एक नया आयाम मिला इस फ़िल्म से। "ए लो मैं हारी पिया हुई तेरी जीत रे", "बाबूजी धीरे चलना", "मोहब्बत कर लो जी भर लो", "हूँ अभी मैं जवान ऐ दिल", "अरे न न न तौबा तौबा", और "सुन सुन सुन सुन ज़ालिमा" जैसे गीतों में गीता जी की मादकता आज भी दिल में हलचल पैदा कर देती है। लेकिन इस फ़िल्म में एक और गीत भी है, जिसमें गीता जी का अंदाज़ कुछ ग़मगीन सा है। "सुन सुन ज़ालिमा" गीत का ही एक संस्करण हम इसे कह सकते हैं, जिसके बोल हैं "जा जा जा जा बेवफ़ा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे, तू ना किसी का मीत रे, झूठे तेरे प्यार की क़सम"। वैसे यही पंक्ति "सुन सुन ज़ालिमा" में भी गीता दत्त गाती हैं, लेकिन एक नोक-झोक टकरार वाली अंदाज़ में, और इसी को धीमी लय में और सैड मूड में परिवर्तित कर इसका गीता जी का एकल संस्करण बनाया गया है। तो आइए आज की कड़ी करें मजरूह और नय्यर की अमर जोड़ी के नाम, साथ ही गीता जी का भी स्मरण। 03-Jaa Jaa Jaa Jaa Re Bewafa CD MISC-20160221 Track#03 3:24 AAR PAAR-1954; Geeta Dutt; O.P.Nayyar; Majrooh Sultanpuri कभी रात दिन हम दूर थे.....प्यार बदल देता है जीने के मायने और बदल देता है दूरियों को "मिलन" में “एक पल की उम्र लेकर” शृंखला# 714- कभी रात दिन हम दूर थे..... 'An Indian Morning' में हमने शुरु की है फ़िल्मी गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' । आज इसकी चौथी कड़ी प्रस्तुत है । हम मिलते रहे, रोज़ मिलते रहे, तुमने अपने चेहरे के दाग, पर्दों में छुपा रखे थे मैंने भी सब ज़ख्म अपने, बड़ी सफ़ाई से ढाँप रखे थे, मगर हम मिलते रहे - रोज़ नए चेहरे लेकर, रोज़ नए जिस्म लेकर, आज, तुम्हारे चेहरे पर पर्दा नहीं, आज, हम और तुम हैं, जैसे दो अजनबी दरअसल हम मिले ही नहीं थे अब तक, देखा ही नहीं था कभी एक-दूसरे का सच, आज मगर कितना सुन्दर है - मिलन आज, जब मैंने चूम लिए हैं, तुम्हारे चेहरे के दाग और तुमने भी तो रख दी है, मेरे ज़ख्मों पर - अपने होठों की मरहम। मिलन की परिभाषा कई तरह की हो सकती है। कभी कभी हज़ारों मील दूर रहकर भी दो दिल आपस में ऐसे जुड़े होते हैं कि शारीरिक दूरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। और कभी कभी ऐसा भी होता है कि वर्षों तक साथ रहते हुए भी दो शख्स एक दूजे के लिए अजनबी ही रह जाते हैं। और कभी कभी मिलन की आस लिए दो दिल सालों तक तरसते हैं और फिर जब मिलन की घड़ी आती है तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। ऐसा लगता है जैसे दो नदियाँ अलग अलग तन्हा बहते बहते आख़िरकार संगम में एक दूसरे से मिल गई हों। मिलन और जुदाई सिक्के के दो पहलु समान हैं। दुख और सुख, धूप और छाँव, ख़ुशी और ग़म जैसे जीवन की सच्चाइयाँ हैं, वैसे ही मिलन और जुदाई, दोनों की ही बारी आती है ज़िंदगी में समय समय पर, जिसके लिए आदमी को हमेशा तैयार रहना चाहिए। इसे तो इत्तेफ़ाक़ की ही बात कहेंगे न, जैसा कि गीतकार आनंद बक्शी नें फ़िल्म 'आमने-सामने' के गीत में कहा था कि "कभी रात दिन हम दूर थे, दिन रात का अब साथ है, वो भी इत्तेफ़ाक़ की बात थी, ये भी इत्तेफ़ाक़ की बात है"। बड़ा ही ख़ूबसूरत युगल गीत है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी नें भी कितना सुरीला कम्पोज़िशन तैयार किया है इस गीत के लिए। तो लीजिए आज मिलन के रंग में रंगे इस प्रस्तुति में सुनिये 'आमने-सामने' फ़िल्म का यह सदाबहार गीत। 04-Kabhi Raat Din Hum Door Thhe CD MISC-20160207 Track#04 6:57 AAMNE-SAAMNE-1967; Lata Mangeshkar, Mohammad Rafi; Kalyanji-Anandji; Anand Bakshi इतनी बड़ी ये दुनिया जहाँ इतना बड़ा मेला....पर कोई है अकेला दिल, जिसकी फ़रियाद में एक हँसी भी है उपहास की 'गान और मुस्कान' शृंखला # 654- इतनी बड़ी ये दुनिया जहाँ इतना बड़ा मेला.... गान और मुस्कान', इन दिनों 'An Indian Morning' पर जारी है यह लघु शृंखला जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गायक-गायिकाओं की हँसी या मुस्कुराहट सुनाई या महसूस की जा सकती है। पिछले गीतों में नायिका की चुलबुली अंदाज़, शोख़ी और रूमानीयत से भरी अदायगी, और साथ ही उनकी मुस्कुराहटें, उनकी हँसी आपनें सुनी। लेकिन जैसा कि पहले अंक में हमनें कहा था कि ज़रूरी नहीं कि हँसी हास्य से ही उत्पन्न हो, कभी कभार ग़म में भी हंसी छूटती है, और वह होती है अफ़सोस की हँसी, धिक्कार की हँसी। यहाँ हास्य रस नहीं बल्कि विभत्स रस का संचार होता है। जी हाँ, कई बार जब दुख तकलीफ़ें किसी का पीछा ही नहीं छोड़ती, तब एक समय के बाद जाकर वह आदमी दुख-तकलीफ़ों से ज़्यादा घबराता नहीं, बल्कि दुखों पर ही हँस पड़ता है, अपनी किस्मत पर हँस पड़ता है। आज के अंक के लिए हम एक ऐसा ही गीत लेकर आये हैं रफ़ी साहब की आवाज़ में। जी हाँ रफ़ी साहब की आवाज़ में अफ़सोस की हँसी। दोस्तों, वैसे तो इस गीत को मैंने बहुत साल पहले एक बार सुना था, लेकिन मेरे दिमाग से यह गीत निकल ही चुका था। और जब मैं रफ़ी साहब की हँसी वाला गीत नेट पर ढूंढ रहा था इस शृंखला के लिए, तो मुझे यकीन था कि शायद कोई ऐसा गीत मिलेगा जिसमें अभिनेता होंगे जॉनी वाकर या कोई और हास्य कलाकार। लेकिन आश्चर्य से मेरे हाथ यह गीत लगा और मुझे ख़ुशी है कि हँसी से इस रूप को भी इस शृंखला में हम शामिल कर सके। यह गीत है फ़िल्म 'तूफ़ान में प्यार कहाँ' का। कुछ याद आया कि कितने साल पहले आपने इस गीत को सुना होगा? 'तूफ़ान में प्यार कहाँ' सन् १९६६ की फ़िल्म थी, जिसमें मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, नलिनी जयवंत, शशिकला, जयश्री गडकर और सुंदर प्रमुख। फणी मजुमदार निर्देशित इस फ़िल्म को बॉक्स ओफ़िस पर कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन इसके कम से कम दो गीत मशहूर ज़रूर हुए थे। एक तो लता-रफ़ी का "आधी रात को खनक गया" और दूसरा गीत था रफ़ी की एकल आवाज़ में "इतनी बड़ी दुनिया, जहाँ इतना बड़ा मेला, मगर मैं, हा हा हा, कितना अकेला"। दादामुनि पर फ़िल्माये गये इस गीत नें मेरी एक और ग़लत धारणा को परास्त किया। पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में यह बैठा हुआ था कि इस गीत को दादामुनि नें ही गाया है, यह तो मुझे कल ही पता चला कि इसे रफ़ी साहब नें आवाज़ दी है। लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि रफ़ी साहब नें दादामुनि अशोक कुमार की शख़्सीयत और आवाज़ को ध्यान में रख कर ही इस गीत को गाया होगा। इस फ़िल्म के संगीतकार थे चित्रगुप्त और गीतकार थे प्रेम धवन। तो आइए आज का यह गीत सुनते हैं, इस गीत में निराशा भरे सु्रों में भी हँसी की एक झलक महसूस कीजिए रफ़ी साहब की आवाज़ में। क्या आप जानते हैं...कि बिहार के छपरा ज़िले में जन्में चित्रगुप्त संगीतकार बनने से पहले इकोनोमिक्स और जर्नलिज़्म में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया था। 05-Itni Badi Ye Duniya Jahan Itna Bada Mela CD MISC-20160221 Track#05 3:41 TOOFAN MAIN PYAR KAHAN-1966; Mohammad Rafi; Chitragupt; Prem Dhawan 1)"दस थाट, दस राग और दस गीत” 2) “एक मैं और एक तू” 3) “...और कारवाँ बनता गया” 4) “एक पल की उम्र लेकर” 5) “गान और मुस्कान” तो मेहरबान और कद्रदान हो जाइए तैयार An Indian Morning की वार्षिक संगीतमाला के साथ। पिछले साल प्रदर्शित मेरी पसंद के पच्चीस गीतों का ये सिलसिला कुछ महीनों तक ज़ारी रहेगा। हर हफ्ते एक या दो गीत प्रस्तुत होंगे, आपकी खिदमत में। वार्षिक संगीतमाला 2015 पॉयदान # 20 : रंग दे तू मोहे गेरुआ Rang De Tu Mohe Gerua वार्षिक संगीतमाला के इस सफ़र में हम आ पहुँचे हैं बीसवीं पॉयदान के गीत पर। आइसलैंड की खूबसूरत वादियाँ में फिल्माया ये चर्चित गीत है फिल्म दिलवाले का । गाना तो आप पहचान ही गए होंगे रंग दे तू मोहे गेरुआ। इस गीत के बारे में आज आपको बताएँगे कि ये गीत कैसे अस्तित्व में आया? प्रीतम जब दिलवाले की धुन को रच रहे थे तब निर्देशक रोहित शेट्टी बुल्गारिया में शूटिंग कर रहे थे। शाहरुख को भी वहाँ जाना था पर जाने के पहले वो गीत को अंतिम रूप में सुन लेना चाहते थे। वहाँ जाने के पहले तय हुआ कि शाहरुख प्रीतम के स्टूडियो में गाना सुनने आएँगे। प्रीतम ने मुखड़े की धुन तो रच ली थी पर गाना तैयार नहीं हुआ था। उन्होंने गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को कहा कि जब तक शाहरुख बांद्रा से अँधेरी पहुँचे तब तक हमें गीत तैयार कर लेना है। प्रीतम की धुन पर अमिताभ ने लिखा रांझे की दिल से है दुआ ..रंग दे तू मोहे गेरुआ । अब इसमें जो गेरुआ शब्द है वो प्रीतम को जँचा नहीं। हिंदी भाषा से वो ज्यादा परिचित नहीं थे तो उन्हें ये कम प्रयुक्त होने वाला शब्द अटपटा सा लगा। पर अमिताभ अड़े रहे। अंत में प्रीतम को झुकना पड़ा। ख़ैर पैंतालीस मिनट के भीतर गीत का मुखड़ा क्या अंतरा तक बन गया। शाहरुख ने भी गाना सुन यही कहा कि गेरुआ सुनने में तो अच्छा लग रहा है पर पता नहीं नया शब्द होने की वज़ह से देखने वाले उसे कैसे लेंगे पर फिर भी गीत वैसे ही बना। अरिजीत तो बर्फी के ज़माने से ही प्रीतम के प्रिय रहे हैं। स्त्री स्वर के लिए उन्होंने नवोदित गायिका अंतरा मित्रा को चुना। गीत की रिकार्डिंग रात तीन बजे हुई। बाद में रोहित व शाहरुख ने उनके उस रात गाए वर्सन को ही स्वीकृति दे दी और वो फिल्म का हिस्सा बन गया। और हाँ आपको बता दें कि अमिताभ रंग दे तू मोहे गेरुआ द्वारा कहना क्या चाहते हैं? नायक नायिका से कहना ये चाह रहा है कि तुम मुझे अपने प्रेम में जोगी बना दो यानि गेरुए रंग में रंग दो.. आइसलैंड की खूबसूरती को रोहित शेट्टी ने बड़े क़रीने से उतारा है रुपहले पर्दे पर इस गीत के माध्यम से.. 06-Gerua CD MISC-20160221 Track#06 5:45 DILWALE-2015; Arijit Singh, Antara Mitra; Pritam; Amitabh Bhattacharya वार्षिक संगीतमाला 2015 पॉयदान # 19 : अफ़गान जलेबी, माशूक फ़रेबी .. Afghan Jalebi वार्षिक संगीतमाला के दो हफ्तों के सफ़र को पार कर हम जा पहुँचे है इस गीतमाला की उन्नीस वीं सीढ़ी पर। यहाँ जो गीत बैठा है वो मेरा इस साल का चहेता डॉन्स नंबर है। जब भी ये गीत सुनता है मन झूमने को कर उठता है। ये गीत है फिल्म फैंटम का और इसके संगीतकार हैं प्रीतम। आजकल जो गाने थिरकने के लिए बनाए जाते हैं उसमें ध्यान बटोरने के अक़्सर भोंडे शब्दों का इस्तेमाल जनता जनार्दन में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में होता रहा है। मेरा मानना है कि नृत्य प्रधान गीत भी अच्छे शब्दों के साथ उतना ही प्रभावी हो सकता है। बंटी और बबली का गीत कजरारे कजरारे तेरे काले काले रैना जो एक ऐसा ही गीत था । अफ़गान जलेबी में भी शब्दों का चयन साफ सुथरा है और इसका जानदार संगीत संयोजन इस गीत को संगीतमाला में स्थान दिलाने में कामयाब रहा है। गीत तालियों की थाप से शुरु होता है और फिर अपनी लय को पकड़ लेता है जिससे श्रोता एक बार बँधता है तो फिर बँधता ही चला जाता है। अमिताभ भट्टाचार्य ने फिल्म के माहौल के हिसाब से गीत में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया है। प्रीतम ने इस गीत को कई गायकों से थोड़ी बहुत फेर बदल के साथ गवाया है। पर जो वर्सन में आपको सुनाने जा रहा हूँ वो पाकिस्तान के गायक सैयद असरार शाह ने गाया है। प्रीतम ने असरार की आवाज़ कोक स्टूडियो पर सुनी और इस गीत के लिए उन्हें चुन लिया। असरार कहते हैं कि इस गीत को गाना उन्होंने इसलिए स्वीकार किया क्यूँकि इसमें नायिका की खूबसूरती को एक तरीके से उभारा गया है और अल्लाह की बनाई किसी चीज़ की तारीफ़ करना ख़ुदा की ही इबादत करना है। तो आइए सुनते हैं ये मज़ेदार नग्मा 07-Afghan Jalebi CD MISC-20160221 Track#07 3:50 PHANTOM-2015; Syed Asrar Shah, Akhtar Channal; Pritam; Amitabh Bhattacharya THE END समाप्त
Jago Mohan Pyare
Lata Mangeshkar; Salil Choudhary; Shailendra - JAGTE RAHO-1956
Diwana Hua Badal, Sawan Ki Ghata Chhayi
Mohammad Rafi, Asha Bhosle; O.P.Nayyar; S.H.Bihari - KASHMIR KI KALI-1964
Jaa Jaa Jaa Jaa Re Bewafa
Geeta Dutt; O.P.Nayyar; Majrooh Sultanpuri - AAR PAAR-1954
Kabhi Raat Din Hum Door Thhe
Lata Mangeshkar, Mohammad Rafi; Kalyanji-Anandji; Anand Bakshi - AAMNE-SAAMNE-1967
Itni Badi Ye Duniya Jahan Itna Bada Mela
Mohammad Rafi; Chitragupt; Prem Dhawan - TOOFAN MAIN PYAR KAHAN-1966
Gerua
Arijit Singh, Antara Mitra; Pritam; Amitabh Bhattacharya - DILWALE-2015 New
Afghan Jalebi
Syed Asrar Shah, Akhtar Channal; Pritam; Amitabh Bhattacharya - PHANTOM-2015 New
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