An Indian Morning
Sunday February 7th, 2016 with Dr. Harsha V. Dehejia and Kishore "Kish" Sampat
Devotional, Classical, Ghazals, Folklore, Old/New Popular Film/Non-Film Songs, Community Announcements and more...
Celebrating not only the "Music of India", but equally so its varied rich art, culture and people while keeping the "Spirit of India" alive...
एक बार फिर हार्दिक अभिनंदन आप सबका, शुक्रिया, घन्यावाद और Thank You इस प्रोग्राम को सुनने के लिए।
अब क्या मिसाल दूं...वाकई बेमिसाल है ये गीत और इस गीत में रफ़ी साहब की आवाज़
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 743-“दस थाट, दस राग और दस गीत”
शृंखला “दस थाट, दस राग और दस गीत” की तीसरी कड़ी में, मैं किशोर संपट सभी संगीत अनुरागियों का स्वागत करता हूँ। इन दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले हफ्तों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा है नहीं। रागों की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से उत्पन्न माना गया है। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों। थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया।
खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒। इस थाट का आश्रय राग “खमाज” कहलाता है। “खमाज” राग में निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है। खमाज थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग है- झिंझोटी, तिलंग, रागेश्वरी, गारा, देस, जैजैवन्ती, तिलक कामोद आदि।
आज हम आपको राग “खमाज” पर आधारित जो गीत सुनवाने जा रहे हैं, वह १९६३ में प्रदर्शित फिल्म “आरती” से लिया गया है। इस फिल्म के संगीत निर्देशक रोशन थे। हिन्दी फिल्म के जिन संगीतकारों ने राग आधारित गीतों की उत्तम रचनाएँ की हैं, उनमें रोशन का नाम सर्वोपरि है। रोशन द्वारा संगीतबद्ध अनेक राग आधारित गीत आज कई दशक बाद भी लोकप्रिय हैं। गीत के बोल हैं- “अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की...”। इसके गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी हैं और इसे मोहम्मद रफी ने स्वर दिया है। आइए सुनते हैं, राग “खमाज” पर आधारित यह गीत-
01-Ab Kya Misaal Doon Mein Tumhare Shabaab Ki CD MISC-20160207 Track#01 3:27
AARTI-1963; Mohammad Rafi; Roshan; Majrooh Sultanpuri
भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, जमाना खराब है दगा नहीं देना....कुछ यही कहना है हमें भी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 553-'एक मैं और एक तू'
३० और ४० के दशकों से एक एक मशहूर युगल गीत सुनने के बाद 'एक मैं और एक तू' शुंखला में आज हम क़दम रख रहे हैं ५० के दशक में। इस दशक में युगल गीतों की संख्या इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि एक से बढ़कर एक युगल गीत बनें और अगले दशकों में भी यही ट्रेण्ड जारी रहा। अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, रोशन, ओ. पी. नय्यर, हेमन्त कुमार, सलिल चौधरी जैसे संगीतकारों ने एक से एक नायाब युगल गीत हमें दिए।
अब आप ही बतायें कि इस दशक का प्रतिनिधित्व करने के लिए हम इनमें से किस संगीतकार को चुनें। भई हमें तो समझ नहीं आ रहा। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना किसी कमचर्चित संगीतकार की बेहद चर्चित रचना को ही बनाया जाये ५० के दशक का प्रतिनिधि गीत! क्या ख़याल है? तो साहब आख़िरकार हमने चुना लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का गाया फ़िल्म 'बारादरी' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत युगलगीत "भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, ज़माना ख़राब है दग़ा नहीं देना जी दग़ा नहीं देना"। संगीतकार हैं नौशाद नहीं, नाशाद। नाशाद का असली नाम था शौक़त अली। उनका जन्म १९२३ को दिल्ली में हुआ था। बहुत छोटे उम्र से वो अच्छी बांसुरी बजा लेते थे और समय के साथ साथ उस पर महारथ भी हासिल कर ली। संगीत के प्रति उनका लगाव उन्हें बम्बई खींच लाया, जहाँ पर उन्हें उस समय के मशहूर संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर और नौशाद अली के साथ बतौर साज़िंदा काम करने का मौका मिला। नाशाद के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इस नाम को धारण करने से पहले उन्होंने कई अलग अलग नामों से फ़िल्मों में संगीत दिया है। और ऐसा उन्होंने १९४७ से ४९ के बीच किया था। 'दिलदार', 'पायल' और 'सुहागी' फ़िल्मों में उन्होंने शौकत दहल्वी के नाम से संगीत दिया तो 'जीने दो' में शौकत हुसैन के नाम से, 'टूटे तारे' में शौकत अली के नाम से तो 'आइए' में शौकत हैदरी का नाम पर्दे पर आया। और 'दादा' फ़िल्म में उनका नाम आया शौकत हुसैन हैदरी। आख़िरकार १९५३ में निर्देशक और गीतकार नक्शब जराचवी ने उनका नाम बदलकर नाशाद कर दिया, और यह नाम आख़िर तक उनके साथ बना रहा। नक्शब ने अपनी १९५३ की फ़िल्म 'नग़मा' के लिए नाशाद को संगीतकार चुना, जिसमें अशोक कुमार और नादिरा ने अभिनय किया था।
नाशाद के नाम से उन्हें पहली ज़बरदस्त कामयाबी मिली सन् १९५५ में जब उनके रचे गीत के. अमरनाथ की फ़िल्म 'बारादरी' में गूंजे और सर्वसाधारण से लेकर संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों तक को बहुत लुभाये। ख़ास कर आज के प्रस्तुत गीत ने तो कमाल ही कर दिया था। अजीत और गीता बाली पर फ़िल्माया यह गीत १९५५ के सबसे लोकप्रिय युगल गीतों में शामिल हुआ। ख़ुमार बाराबंकवी ने 'बारादरी' के गानें लिखे थे। तो आइए अब मैं आपके और इस सुमधुर गीत के बीच में से हट जाता हूँ, ।
क्या आप जानते हैं...
कि नाशाद १९६६ में पाक़िस्तान स्थानांतरित हो गये थे और वहाँ जाकर 'सालगिरह', 'ज़ीनत', 'नया रास्ता', 'रिश्ता है प्यार का', 'फिर सुबह होगी' जैसी कुछ पाक़िस्तानी फ़िल्मों में संगीत दिया था।
02-Bhula Nahin Dena Ji Bhula Nahin Dena CD MISC-201600207 Track#02 4:04
BARADARI-1955; Mohammad Rafi, Lata Mangeshkar; Naashaad; Khumar Barabankvi
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयाँ होंगे....संगीत प्रेमी ढूँढेगें मजरूह साहब को वो जहाँ भी होंगें
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 663-“...और कारवाँ बनता गया”
दस अलग अलग संगीतकारों के लिये मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीतों की इस लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया' की तीसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। साल २००० में मजरूह साहब इस फ़ानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिये छोड़ गये थे। नीमोनिआ का दौरा पड़ने पर मजरूह साहब को १६ मई २००० को मुंबई के लीलावती हस्पताल में भर्ती करवाया गया था और वहीं पर उन्होंने अपनी अंतिम सांसें ली। मजरूह साहब को गये १5 वर्ष, याने एक युग बीत चुका है, लेकिन बार बार उनका लिखा और मदन मोहन का स्वरबद्ध किया वही गीत याद आता है कि "हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयाँ होंगे, बहारें हमको ढूंढ़ेंगी न जाने हम कहाँ होंगे"। लेखक राजीव विजयकर नें बहुत ही अच्छी तरह से मजरूह साहब की शख्सियत को बयान किया था अपने एक लेख में, जिसमें उन्होंने लिखा था कि मजरूह साहब एक सिक्के की तरह है जिसके दोनों पहलुओं की एक समान ज़रूरत होती है। अगर आप इस सिक्के से टॉस भी अगर करें तो चित हो या पुट, दोनों में ही आपकी जीत निश्चित है। इस सिक्के के एक पहलु में है एक लाजवाब शायर, वह शायर जिनका शुमार २०-वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ अदबी शायरों में होता है। सिक्के के दूसरे पहलु में है फ़िल्म संगीत में दीर्घतम पारी खेलने वाले अम व लोकप्रिय गीतकार, जिन्होंने नौशाद से शुरु कर आनंद-मिलिंद, जतीन-ललित, अनु मलिक से होते हुए लेज़्ली ले लीविस और ए. आर. रहमान की धुनों पर अपने अमर बोल बिठा गये।
पिछले हफ्ते हम बात कर रहे थे १९५३ की उन फ़िल्मों का जिनमें मजरूह साहब नें अनिल बिस्वास के साथ काम किया था। इसी साल तीन और संगीतकारों के साथ किये उनके काम चर्चित हुए। ये थे जमाल सेन, ओ. पी. नय्यर और तीसरे संगीतकार थे मदन मोहन, जिनकी धुनों पर इन्होंने इस साल लिखे थे फ़िल्म 'बाग़ी' के गानें। दिलीप कुमार के अच्छे मित्र आयुब ख़ान नें 'ट्युन फ़िल्म्स' के बैनर तले इस फ़िल्म का निर्माण किया था, जिसका निर्देशन अनंत ठाकुर नें किया और जिसमें मुख्य कलाकार थे रंजन और नसीम बानो। इस फ़िल्म में लता जी के गाये "बहारें हमको ढूंढ़ेंगी न जाने हम कहाँ होंगे" को सुनकर वाक़ई यह अहसास होता है कि इस गीत के गीतकार-संगीतकार को बहारें बड़ी शिद्दत से याद करती हैं। आज इस गीत के बने ६० साल होने जा रही है, लेकिन जब भी इस गीत को हम सुनते हैं इससे जुड़े कलाकारों के लिए जैसे नतमस्तक होने को जी चाहता है। मजरूह साहब, बहारें आपको क्यों ढूंढ़े? आप चाहे जहाँ कहीं भी हों, आपके सदाबहार गीत हमेशा बहार बन कर छाते रहे हैं, और हमेशा छाते रहेंगे!
03-Hamare Baad Ab Mehfil Mein Afsaane Bayan Honge CD MISC-20160207 Track#03 2:42
BAAGI-1953; Lata Mangeshkar; Madan Mohan; Majrooh Sultanpuri
दिल ढूँढता है....रोजमर्रा की आपाधापी से भरे शहरी जीवन में सुकून भरा "अवकाश" तलाशती जिंदगी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 713-“एक पल की उम्र लेकर”
'An Indian Morning' में हमने शुरु की है फ़िल्मी गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' । आज इसकी तीसरी कड़ी प्रस्तुत है ।
आज की भाग-दौड़ भरी और तनावपूर्ण ज़िंदगी में कभी किसी दिन मन में ख़याल आता है कि काश आज छुट्टी मिल जाती उस गतानुगतिक ज़िंदगी से। तो फिर ख़यालों में ही सही, घूम तो आते यादों की गलियारों से; जिन गलियारों से होते हुए जाती है सड़क बर्फ़ से ढके पहाड़ों की तरफ़, वो पहाड़ें जिनमें गूंजती हुई ख़ामोशी की कल्पना कभी गुलज़ार साहब नें की थी 'मौसम' का वह सदाबहार गीत लिखते हुए। ग़ालिब के शेर "दिल ढूंढ़ता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात दिन, बैठे रहें तसव्वुरे जाना किए हुए" को आगे बढ़ाते हुए गुलज़ार साहब नें बड़ी ख़ूबसूरती के साथ कभी जाड़ों की नर्म धूप को आंगन में बैठ कर सेंकना, कभी गरमी की रातों में छत पर लेटे हुए तारों को देखना, और कभी बर्फ़ीली वादियों में दिन गुज़ारना, इस तरह के अवकाश के दिनों का बड़ा ही सजीव चित्रण किया था। आइए इस अवकाश की घड़ी में फ़िल्म 'मौसम' के इस गीत को सुनें। मदन मोहन का संगीत है। इस गीत के दो संस्करणों में लता-भूपेन्द्र का गाया युगल-संस्करण हमनें पहले सुनवाया था, आइए आज सुना जाये भूपेन्द्र का एकल संस्करण।
04-Dil Dhoondhta Hai CD MISC-20160207 Track#04 6:41
MAUSAM-1975; Bhupinder Singh; Madan Mohan; Gulzar
एक बात कहूँ गर मानो तुम.....हमेशा हँसते हंसाते रहिये इसी तरह
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 653-'गान और मुस्कान'
'An Indian Morning' की लघु शृंखला 'गान और मुस्कान' के अंतर्गत आप सुन रहे हैं गायक गायिकाओं की हँसी । आज बारी लता मंगेशकर की हँसी सुनने की। पिछले हफ्ते का जो गीत था उसमें चुपके से सपने में आने की बात कही गई थी और आज जो गीत लेकर हम आये हैं, उसका भी भाव कुछ कुछ इसी तरह का है। नायिका शिकायत कर रही है कि नायक उनके सपनों में आते हैं जिस वजह से कभी वो नींद में उठकर चलती है तो कभी सोफ़े से गिर पड़ती है, तो कभी नायक का हाथ समझ कर सोफ़े का पाया ही पकड़ लेती है। जी हाँ, फ़िल्म 'गोलमाल' का यह गीत है "एक बात कहूँ गर मानो तुम, सपनों में न आना जानो तुम, मैं नींद में उठके चलती हूँ, जब देखती हूँ सच मानो तुम"। गुलज़ार और पंचम की जोड़ी का कमाल। वैसे इस गीत की तरफ़ लोगों का ध्यान ज़रा कम कम ही रहा है। 'गोलमाल' के नाम से लोग ज़्यादा "आने वाला पल जाने वाला है" को ही याद करते हैं। लेकिन गुणवत्ता में यह गीत भी कुछ कम नहीं है। इसमें गुलज़ार साहब नें बड़े ही सीधे बोलचाल जैसी भाषा का इस्तमाल करते हुए हास्य रस में डूबो डूबो कर गीत पेश किया है। जैसे कि एक अंतरे में नायिका गाती हैं "कल भी हुआ कि तुम गुज़रे थे पास से, थोड़े से अनमने, थोड़े उदास से, भागी थी मनाने नींद में लेकिन सोफ़े से गिर पड़ी..."। जिस गीत में भी कल्पना की बात आती है, ऐसे गीतों में गुलज़ार साहब को पूरी छूट मिल जाती है और वो पता नहीं अपनी सृजनशीलता को किस हद तक लेकर चले जाते हैं। रोमांटिक कॉमेडी का अनोखा उदाहरण है बिंदिया गोस्वामी पर फ़िल्माया यह गीत।
इस गीत का सिचुएशन है कि अमोल पालेकर बिंदिया को गीत सिखाने आये हैं, और बिंदिया उन्हें यह गीत गा कर सुना रही है, और इस गीत में वो अपने पहले पहले प्यार के गुदगुदाने वाले अनुभवों का वर्णन भी कर रही है।
'गोलमाल' फ़िल्म तो पूर्णत: उत्पल दत्त, अमोल पालेकर और दीना पाठक की फ़िल्म थी, लेकिन नायिका के रूप में बिंदिया गोस्वामी नें भी अच्छी अदाकारी प्रस्तुत की थी। प्रस्तुत गीत को सुनते हुए भले ही आप हँस हँस कर लोट-पोट न हों, लेकिन लता जी की हँसी ही इस गीत का X-factor है जिसनें गीत को चार चांद लगा दी है। ऐसा हमने पहले भी कहा था, आज दोहरा रहे हैं कि लता जी की गाती हुई या बोलती हुई आवाज़ जितनी सुरीली है, उतना ही मनमोहक है उनकी हँसी। लता जी की इसी मधुर हँसी पर तो जैसे मर मिटने को जी चाहता है, और ईश्वर से यही प्रार्थना है कि लता जी के होठों पर मुस्कुराहट और हँसी सदा कायम रहे। आइए सुनें आज का यह गीत।
05-Ek Baat Kahoon Gar Maano Tum CD MISC-20160207 Track#05 3:59
GOLMAAL-1979; Lata Mangeshkar; R.D.Burman; Gulzar
1)“ दस थाट, दस राग और दस गीत” 2) “एक मैं और एक तू” 3) “...और कारवाँ बनता गया” 4) “एक पल की उम्र लेकर” 5) “गान और मुस्कान”
तो मेहरबान और कद्रदान हो जाइए तैयार An Indian Morning की वार्षिक संगीतमाला के साथ। पिछले साल प्रदर्शित मेरी पसंद के पच्चीस गीतों का ये सिलसिला कुछ महीनों तक ज़ारी रहेगा। हर हफ्ते एक या दो गीत प्रस्तुत होंगे, आपकी खिदमत में।
वार्षिक संगीतमाला 2015 पॉयदान # 21 : सूरज डूबा है यारों Sooraj Dooba Hai Yaaron...
संगीतमाला की 21पॉयदान सुरक्षित है एक ऐसे गीत के लिए जिसके बोल और संगीत के साथ पिछले साल देश की युवा पीढ़ी के सबसे ज्यादा पैर थिरके होंगे। फिल्म रॉय के इस गीत में अमल द्वारा दिए गए नृत्य के लिए मन माफिक संगीत संयोजन के साथ अरिजित सिंह की आवाज़ और कुमार के बोल मस्ती का वो माहौल तैयार करते हैं कि मन सब कुछ भूल इस गीत की रिदम के साथ बहता चला जाता है। बतौर फिल्म रॉय कोई खास तो नहीं चली पर इसके संगीत को आम जन में लोकप्रियता खूब मिली।
कुमार का लिखा ये गीत हमें अपनी अभी की परेशानियों को भूल कर बेफिक्री के कुछ पल अपने आप को देने की ताकीद करता है। सच बेफिक्री का भी अपना ही मज़ा है। जीवन में काम तो लगे ही रहते हैं पर उसमें अपनी ज़िंदगी इतनी भी ना उलझा लीजिए कि ख़ुद अपने लिए वक़्त ही ना रहे। जब तक चिंतामुक्त होकर अपने अंदर की आवाज़ को हम बीच बीच में नहीं टटोलेंगे तो बस एक मशीन बन कर ही रह जाएँगे। अब ये अलग बात है कि कुछ लोग इस अहसास तक पहुंचने के लिए नशे का सहारा लेते हैं तो कुछ स्वाभाव से ही मस्तमौला होते हैं।
इस गीत के युवा संगीतकार हैं अमल मलिक जो गायक व संगीतकार अरमान मलिक के भाई और अनु मलिक के भतीजे हैं।
अरिजित सिंह ने इस गीत में नया कुछ भले ना किया हो पर सुनने वालों को निराश भी नहीं किया। गीत में उनका साथ दिया है अदिति सिंह शर्मा ने। तो आइए सुनते हैं झूमने झुमाने वाला ये गीत..
06-Sooraj Dooba Hai Yaaron CD MISC-20160207 Track#06 4:24
ROY-2015; Arijit Singh, Aditi Singh Sharma; Amaal Mallik; Kumaar
वार्षिक संगीतमाला 2015 पॉयदान # 20 : रंग दे तू मोहे गेरुआ Rang De Tu Mohe Gerua
वार्षिक संगीतमाला के इस सफ़र में हम आ पहुँचे हैं बीसवीं पॉयदान के गीत पर। आइसलैंड की खूबसूरत वादियाँ में फिल्माया ये चर्चित गीत है फिल्म दिलवाले का । गाना तो आप पहचान ही गए होंगे रंग दे तू मोहे गेरुआ। इस गीत के बारे में आज आपको बताएँगे कि ये गीत कैसे अस्तित्व में आया?
प्रीतम जब दिलवाले की धुन को रच रहे थे तब निर्देशक रोहित शेट्टी बुल्गारिया में शूटिंग कर रहे थे। शाहरुख को भी वहाँ जाना था पर जाने के पहले वो गीत को अंतिम रूप में सुन लेना चाहते थे। वहाँ जाने के पहले तय हुआ कि शाहरुख प्रीतम के स्टूडियो में गाना सुनने आएँगे। प्रीतम ने मुखड़े की धुन तो रच ली थी पर गाना तैयार नहीं हुआ था। उन्होंने गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को कहा कि जब तक शाहरुख बांद्रा से अँधेरी पहुँचे तब तक हमें गीत तैयार कर लेना है।
प्रीतम की धुन पर अमिताभ ने लिखा रांझे की दिल से है दुआ ..रंग दे तू मोहे गेरुआ । अब इसमें जो गेरुआ शब्द है वो प्रीतम को जँचा नहीं। हिंदी भाषा से वो ज्यादा परिचित नहीं थे तो उन्हें ये कम प्रयुक्त होने वाला शब्द अटपटा सा लगा। पर अमिताभ अड़े रहे। अंत में प्रीतम को झुकना पड़ा। ख़ैर पैंतालीस मिनट के भीतर गीत का मुखड़ा क्या अंतरा तक बन गया। शाहरुख ने भी गाना सुन यही कहा कि गेरुआ सुनने में तो अच्छा लग रहा है पर पता नहीं नया शब्द होने की वज़ह से देखने वाले उसे कैसे लेंगे पर फिर भी गीत वैसे ही बना।
अरिजीत तो बर्फी के ज़माने से ही प्रीतम के प्रिय रहे हैं। स्त्री स्वर के लिए उन्होंने नवोदित गायिका अंतरा मित्रा को चुना। गीत की रिकार्डिंग रात तीन बजे हुई। बाद में रोहित व शाहरुख ने उनके उस रात गाए वर्सन को ही स्वीकृति दे दी और वो फिल्म का हिस्सा बन गया।
और हाँ आपको बता दें कि अमिताभ रंग दे तू मोहे गेरुआ द्वारा कहना क्या चाहते हैं? नायक नायिका से कहना ये चाह रहा है कि तुम मुझे अपने प्रेम में जोगी बना दो यानि गेरुए रंग में रंग दो.. आइसलैंड की खूबसूरती को रोहित शेट्टी ने बड़े क़रीने से उतारा है रुपहले पर्दे पर इस गीत के माध्यम से..
07-Gerua CD MISC-20160207 Track#07 5:45
DILWALE-2015; Arijit Singh, Antara Mitra; Pritam; Amitabh Bhattacharya
ताजा-सुरताल...
We bring you “Soch Na Sake”.
It is a brilliant start no less for Airlift, what with Amaal Mallik, Arijit Singh and Tulsi Kumar coming together for the song 'Soch Na Sake'. Adapted from Hardy Sandhu's 'Soch', this one is beautiful as it gets with everything fitting in perfectly well, be it the composition, lyrics or the rendition. If Arijit holds fort right through the song, it is Tulsi who brings in the right sweetness to the flow of 'Soch Na Sake' which further adds on to its romantic appeal. A song for all seasons. Hear this once and you would play it on loop.
08-Soch Na Sake CD MISC-20160207 Track#08 4:43
AIRLIFT-2016; Amaal Mallik, Arijit Singh, Tulsi Kumar; Amaal Mallik; Kumaar
THE END समाप्त
Ab Kya Misaal Doon Mein Tumhare Shabaab Ki Mohammad Rafi; Roshan; Majrooh Sultanpuri - AARTI-1963 |
Bhula Nahin Dena Ji Bhula Nahin Dena Mohammad Rafi, Lata Mangeshkar; Naashaad; Khumar Barabankvi - BARADARI-1955 |
Hamare Baad Ab Mehfil Mein Afsaane Bayan Honge Lata Mangeshkar; Madan Mohan; Majrooh Sultanpuri - BAAGI-1953 |
Dil Dhoondhta Hai Bhupinder Singh; Madan Mohan; Gulzar - MAUSAM-1975 |
Ek Baat Kahoon Gar Maano Tum Lata Mangeshkar; R.D.Burman; Gulzar - GOLMAAL-1979 |
Sooraj Dooba Hai Yaaron Arijit Singh, Aditi Singh Sharma; Amaal Mallik; Kumaar - ROY-2015 |
Gerua Arijit Singh, Antara Mitra; Pritam; Amitabh Bhattacharya - DILWALE-2015 |
Soch Na Sake Amaal Mallik, Arijit Singh, Tulsi Kumar; Amaal Mallik; Kumaar - AIRLIFT-2016 |