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An Indian Morning
Sunday January 31st, 2016 with Dr. Harsha V. Dehejia and Kishore "Kish" Sampat
Devotional, Classical, Ghazals, Folklore, Old/New Popular Film/Non-Film Songs, Community Announcements and more...

Celebrating not only the "Music of India", but equally so its varied rich art, culture and people while keeping the "Spirit of India" alive... एक बार फिर हार्दिक अभिनंदन आप सबका, शुक्रिया, घन्यावाद और Thank You इस प्रोग्राम को सुनने के लिए। मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा....एक हिदायत जिसमें है ढेर सारी सीख भी ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 742-“ दस थाट, दस राग और दस गीत” “An Indian Morning” के समस्त संगीत-प्रेमी श्रोताओं का एक बार पुनः मैं किशोर संपट हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के दस थाटों की परिचय श्रृंखला “दस थाट, दस राग और दस गीत” की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला में हम आपको भारतीय संगीत के दस थाटों का परिचय करा रहे हैं। क्रमानुसार सात स्वरों के समूह को थाट कहते हैं। सात शुद्ध स्वरों, चार कोमल और एक तीव्र स्वरों अर्थात कुल बारह स्वरों में से कोई सात स्वर एक थाट में प्रयोग किये जाते हैं। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको “कल्याण” थाट का परिचय दिया था। आज दूसरा थाट है- “बिलावल”। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि अर्थात सभी शुद्ध स्वर का प्रयोग होता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे के अनुसार “बिलावल” थाट का आश्रय राग “बिलावल” ही है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग हैं- अल्हइया बिलावल, बिहाग, देशकार, हेमकल्याण, दुर्गा, शंकरा, पहाड़ी, माँड़ आदि। अब हम आपको राग “बिलावल” पर आधारित एक गीत सुनवाते हैं, जिसे हमने फिल्म “कैदी नम्बर ९११” से लिया है। १९५९ में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार दत्ताराम ने राग 'बिलावल' पर आधारित गीत “मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा...” को लता मंगेशकर से गवाया था। फिल्म संगीत की दुनिया में दत्ताराम, संगीतकार शंकर-जयकिशन के सहायक के रूप में जाने जाते हैं। स्वतंत्र संगीतकार के रूप में दत्ताराम की पहली फिल्म १९५७ की “अब दिल्ली दूर नहीं” थी। दत्ताराम के संगीत निर्देशन में सर्वाधिक लोकप्रिय गीत, फिल्म 'परिवरिश' का -'आँसू भरी है ये जीवन की राहें...' ही है, किन्तु फिल्म “कैदी नम्बर ९११” का गीत 'मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा...' भी मधुरता और लोकप्रियता में कम नहीं है। हसरत जयपुरी के लिखे इस गीत में लता मंगेशकर और फिल्म की बाल कलाकार डेज़ी ईरानी ने स्वर दिया है। लीजिए, आप भी सुनिए- राग “बिलावल” पर आधारित यह मधुर गीत- 01-Mithhi Mithhi Baaton Se Bachna Zara CD MISC-20160131 Track#01 3:47 QAIDI NO. 911-1959; Lata Mangeshkar; Dattaram; Hasrat Jaipuri हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाये....और धीरे धीरे प्रेम में गुजारिशों का दौर शुरू हुआ ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 552-'एक मैं और एक तू' 'एक मैं और एक तू' - फ़िल्म संगीत के सुनहरे दशकों से चुने हुए युगल गीतों से सजी ‘An Indian Morning’ की इस लघु शृंखला की शुरुआत हमने की थी 'अछूत कन्या' फ़िल्म के उस युगल गीत से जो फ़िल्म संगीत इतिहास का पहला सुपरहिट युगल गीत रहा है। आज आइए इस शृंखला की दूसरी कड़ी में पाँव रखें ४० के दशक में। सन् १९४७ में देश के बंटवारे के बाद बहुत से कलाकार भारत से पाक़िस्तान चले गये, बहुत से कलाकार वहाँ से यहाँ आ गये, और बहुत से कलाकार अपने अपने जगहों पर कायम रहे। ए. आर. कारदार और महबूब ख़ान यहीं रह जाने वालों में से थे। लेकिन नूरजहाँ जैसी गायिका अभिनेत्री को जाना पड़ा। लेकिन जाते जाते १९४७ में वो दो फ़िल्में हमें ऐसी दे गईं जिनकी यादें आज धुंधली ज़रूर हुई हैं, लेकिन आज भी इनका ज़िक्र छिड़ते ही हमें ऐसा करार मिलता है कि जैसे किसी बहुत ही प्यारे और दिलअज़ीज़ ने अपना हाथ हमारे सीने पर रख दिया हो! शायद आप समझ रहे होंगे कि आज हम आपको कौन सा गाना सुनवाने जा रहे हैं। जी हाँ, नूरजहाँ और जी. एम. दुर्रानी की युगल आवाज़ों में १९४७ की फ़िल्म 'मिर्ज़ा साहिबाँ' का "हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाये, दिल के उजड़े हुए गुलशन में बहार आ जाये"। 'मधुकर पिक्चर्स' के बैनर तले निर्मित और के. अमरनाथ निर्देशित 'मिर्ज़ा साहिबाँ' फ़िल्म में नूरजहाँ के नायक बने थे त्रिलोक कपूर। संगीतकार पंडित अमरनाथ की यह अंतिम फ़िल्म थी। उनकी असामयिक मृत्यु के बाद उन्हीं के संगीतकार भाइयों की जोड़ी हुस्नलाल और भगतराम ने इस फ़िल्म के गीतों को पूरा किया। अज़ीज़ कशमीरी और क़मर जलालाबादी ने इस फ़िल्म के गानें लिखे जो उस ज़माने में बेहद चर्चित हुए। ख़ास कर आज का प्रस्तुत गीत तो गली गली गूंजा करता था। आइए फ़िल्हाल सुनते हैं दुर्रानी साहब के साथ नूरजहाँ का गाया फ़िल्म 'मिर्ज़ा साहिबाँ' का यह युगल गीत। 02-Haath Seene Pe Jo Rakh Do CD MISC-20160131 Track#02 5:08 MIRZA SAHIBAN-1947; Noor Jehan, G.M.Durani; Pandit Amarnath; Aziz Kashmiri छेड़ी मौत नें शहनाई, आजा आनेवाले....लिखा मजरूह साहब ने ये गीत अनिल दा के लिए ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 662-“...और कारवाँ बनता गया” 'An Indian Morning' के दोस्तों, नमस्कार! फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार व उर्दू के जानेमाने शायर मजरूह सुल्तानपुरी पर केन्द्रित लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया' की दूसरी कड़ी में आप सब का हार्दिक स्वागत है। मजरूह सुल्तानपुरी का असली नाम था असरार उल हसन ख़ान, और उनका जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता एक पुलिस सब-इन्स्पेक्टर थे। पिता का आय इतना नहीं था कि अपने बेटे को अंग्रेज़ी स्कूल में दाख़िल करवा पाते। इसलिए मजरूह को अरबी और फ़ारसी में सात साल 'दर्स-ए-निज़ामी' की तालीम मिली, और उसके बाद आलिम की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद मजरूह नें लखनऊ के तकमील-उत-तिब कॉलेज में यूनानी चिकित्सा की तालीम ली। इसमें उन्होंने पारदर्शिता हासिल की और एक नामचीन हकीम के रूप में नाम कमाया। सुल्तानपुर में मुशायरे में भाग लेते समय वो एक स्थापित हकीम भी थे। लेकिन लोगों नें उनकी शायरी को इतना पसंद किया कि उन्होंने हकीमी को छोड़ कर लेखन को ही पेशे के तौर पर अपना लिया। जल्द ही वो मुशायरों की जान बन गये और उर्दू के नामी शायर जिगर मोरादाबादी के दोस्त भी। कल पहली कड़ी में आपनें सुना था मजरूह साहब का लिखा पहला फ़िल्मी गीत और हमने बताया कि किस तरह से उन्हें इसका मौका मिला था। १९४६ की फ़िल्म 'शाहजहाँ' के गीतों नें इतिहास रच दिया। लेकिन इससे मजरूह सुल्तानपुरी को ज़्यादा फ़ायदा नहीं पहुँचा। देश विभाजन के बाद जब महबूब साहब नें मजरूह साहब को फ़िल्म 'अंदाज़' में गीत लिखने का अवसर दिया तो उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में एक बार फिर धूम मचा दी। नौशाद साहब के बाद ५० के दशक के पहले ही साल में जिस संगीतकार के लिये मजरूह को गीत लिखने का मौका मिला, वो थे अनिल बिस्वास। १९५० की फ़िल्म 'आरज़ू' के गानें बेहद लोकप्रिय हुए हालाँकि इस फ़िल्म में प्रेम धवन और जाँनिसार अख़्तर नें भी कुछ गीत लिखे थे। १९५३ में अनिल बिस्वास और मजरूह नें साथ में काम किया फ़िल्म 'फ़रेब' में जिसके गीत भी कामयाब रहे। इसी बीच मजरूह नें कुछ और संगीतकारों के साथ भी काम किया, जैसे कि ग़ुलाम मोहम्मद (हँसते आँसू, १९५०) और बुलो सी. रानी (प्यार की बातें, १९५१)। मजरूह साहब और अनिल दा के संगम से १९५३ में दो और फ़िल्मों का संगीत उत्पन्न हुआ - 'जलियाँवाला बाग़ की ज्योति' और 'हमदर्द'। आज के अंक के लिये अनिल दा के जिस कम्पोज़िशन को हम सुनवाने के लिये लाये हैं, वह है १९५६ की फ़िल्म 'हीर' का। प्रदीप कुमार और नूतन अभिनीत फ़िल्मिस्तान की इस फ़िल्म के सुमधुर गीतों में लता मंगेशकर का गाया "आ मेरे रांझना रुख़सत की है शाम", हेमन्त कुमार का गाया "बिन देखे फिरूँमस्ताना, मैं तो हीर का हूँ दीवाना" और गीता दत्त का गाया "बुलबुल मेरे चमन के तक़दीर बनके जागो" भी शामिल है, लेकिन हमनें जिस गीत को चुना है, वह है आशा भोसले की आवाज़ में "छेड़ी मौत नें शहनाई, आजा आनेवाले"। नूतन पर फ़िल्माये गये इस गीत को आज हम भुला चुके हैं, लेकिन 'An Indian Morning' के माध्यम से आइए आज, हम और आप, सब एक साथ मिलकर इस भूले बिसरे गीत को सुनें और इन दोनों लाजवाब फ़नकारों - मजरूह सुल्तानपुरी और अनिल बिस्वास - के फ़न को सलाम करें। 03-Chhedi Maut Ne Shehnaai CD MISC-20160131 Track#03 3:34 HEER-1956; Asha Bhosle; Anil Biswas; Majrooh मैं तो हर मोड पे तुझको दूंगा सदा....दिलों के बीच उभरी नफरत की दीवारों को मिटाने की गुहार ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 712-“एक पल की उम्र लेकर” 'An Indian Morning' में हमने शुरु की है फ़िल्मी गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' । आज इसकी दूसरी कड़ी प्रस्तुत है । दीवारें कभी दो परिवारों, दो घरों के बीच दरार पैदा कर देती हैं, तो कभी दो दिलों के बीच। सचमुच बड़ा परेशान करती हैं ये दीवारें, बड़ा सताती हैं। पर ये भी एक हकीकत है कि चाहे दुनिया कितनी भी दीवारें खड़ी कर दें, चाहे कितने भी पहरे बिठा दें, प्यार के रास्ते पर कितने ही पर्वत-सागर बिछा दें, सच्चा प्यार कभी हार स्वीकार नहीं करता। किसी न किसी रूप में प्यार पनपता है, जवान होता है। लेकिन यह तभी संभव है जब कोशिश दोनों तरफ़ से हों। कभी कभार कई कारणों से दोनों में से कोई एक रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पाता। ऐसे में दूसरे के दिल की आह एक सदा बनकर निकलती है। चाहे कोई सुने न सुने, पर दिल तो पुकारे ही चला जाता है। कई बार राह पर फूल बिछे होने के बावजूद किसी मजबूरी की वजह से कांटे चुनने पड़ते हैं। इससे रिश्ते में ग़लतफ़हमी जन्म लेती है और एक बार शक़ या ग़लतफ़हमी जन्म ले ले तो उससे बचना बहुत मुश्किल हो जाता है। अनिल धवन और रेहाना सुल्तान अभिनीत १९७० की फ़िल्म 'चेतना' में सपन जगमोहन के संगीत में गीतकार नक्श ल्यालपुरी नें भी एक ऐसा ही गीत लिखा था "मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा, मेरी आवाज़ को, दर्द के साज़ को तू सुने न सुने"। तो लीजिए इस ख़ूबसूरत गीत का आनन्द लें। 04-Mein To Har Mod Pe Tujhko Doonga Sada CD MISC-20160131 Track#04 3:33 CHETNA-1970; Mukesh; Sapan-Jagmohan; Naqsh Lyaalpuri कोई चुपके से आके सपने जगागे बोले.....कि हँसना जरूरी है जीवन को खुशगवार रंगों से भरने के लिए ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 652-'गान और मुस्कान' 'An Indian Morning' पर हमनें शुरु की है शृंखला 'गान और मुस्कान', जिसके अंतर्गत हम कुछ ऐसे गीत चुन कर लाये हैं जिनमें गायक/गायिका की हँसी सुनाई पड़ती है। दोस्तों, हँसना सेहत के लिए बहुत ही अच्छा होता है। ये न केवल हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करता है, बल्कि रक्त-चाप को भी काबू में रखता है। तभी तो कहा जाता है कि laughter is the best medicine। जीवन-दर्शन में विपरीत परिस्थितियों में भी हँसने और ख़ुश रहने पर ज़ोर दिया गया है, और यही भाव बहुत से फ़िल्मी गीतों में उभरकर सामने आया है। "हँसते जाना, तुम गाते जाना, ग़म में भी ख़ुशियों के दीप जलाते जाना", "गायेजा गायेजा और मुस्कुरायेजा, जब तक फ़ुर्सत दे ये ज़माना", "ग़म छुपाते रहो, मुस्कुराते रहो, ज़िंदगी गीत है, इसको गाते रहो", "हँसते हँसते कट जायें रस्ते, ज़िंदगी युंही चलती रहे, ख़ुशी मिले या ग़म, बदलेंगे ना हम, दुनिया चाहे बदलती रहे", ऐसे और भी न जाने कितने गीत हैं जिनमें हँसने/मुस्कुराने की बात छुपी है। तो चलिए इसी बात पर आप भी ज़रा मुस्कुरा दीजिए न! 'गान और मुस्कान' की पहली कड़ी के गीत में गीता जी की हँसी का एक रूप था, लेकिन वह गीत जिसमें शामिल गीता जी की हँसी हमारे दिल को सब से ज़्यादा छू लेती है, वह है फ़िल्म 'अनुभव' का गीत "कोई चुपके से आके, सपने सुलाके, मुझको जगा के बोले, कि मैं आ रहा हूँ, कौन आये, ये मैं कैसे जानू"। संगीतकार कानू रॉय की धुन और गीतकार कपिल कुमार के बोल। इस गीत के एक अंतरे में गीता जी की हँसी सुनाई पड़ती है, और कहना ज़रूरी है कि जब १९७१ में यह फ़िल्म रिलीज़ हो रही थी, तब गीता जी अपने जीवन की कुछ बेहद कठिन दिनों से गुज़र रही थीं। ऐसे में उनके गाये इस गीत में उनकी हँसी उनके वास्तविक जीवन से बिल्कुल विपरीत, एक जैसे विरोधाभास कराती है। और इसके अगले ही साल गीता जी की मृत्यु हो गई। इस गीत को जब भी कभी हम सुनते हैं, तो गीता जी की हँसी सुन कर मन प्रसन्न होने की बजाय उनके लिए मन जैसे दर्द से भर उठता है। चुपके से किसी के आने की लालसा लिए इस गीत नें जैसे काल को ही दावत दे दी थी! 05-Koi Chupke Se Aake CD MISC-20160131 Track#05 3:29 ANUBHAV-1971; Geeta Dutt; Kanu Roy; Kapil Kumar 1) “ दस थाट, दस राग और दस गीत” 2) “एक मैं और एक तू” 3) “...और कारवाँ बनता गया” 4) “एक पल की उम्र लेकर” 5) “गान और मुस्कान” वार्षिक संगीतमाला 2015 पॉयदान # 23 : हीर तो बड़ी सैड है.. Heer to badi sad hai तो मेहरबान और कद्रदान हो जाइए तैयार An Indian Morning की वार्षिक संगीतमाला के साथ। पिछले साल प्रदर्शित मेरी पसंद के पच्चीस गीतों का ये सिलसिला कुछ महीनों तक ज़ारी रहेगा। हर हफ्ते एक या दो गीत प्रस्तुत होंगे, आपकी खिदमत में। वार्षिक संगीतमाला की तेइसवीं पॉयदान पर चलिए आपको मिलवाते हैं माडर्न हीर से जिसका दुख निर्देशक इम्तियाज़ अली व गीतकार इरशाद क़ामिल को खाए जा रहा है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ फिल्म तमाशा के गीत हीर तो बड़ी सैड है की। तमाशा के सिनेमाहाल में प्रदर्शित होने के पहले टीवी के पर्दों पर सबसे ज्यादा यही गीत दिखाया गया फिल्म के प्रमोशन के लिए। हीर की अटर सैडनेस के बारे में सुनकर मुझे पहला आश्चर्य ये हुआ कि हिंदी कविता में पी एच डी करने वाले क़ामिल साहब की ज़ुबान हिंग्लिश कैसे हो गई? ए आर रहमान की पंजाबी लोक धुन में रंगे जाने पहचाने संगीत पर मीका की आवाज़ का जादू ऐसा था जो मुझे अंत तक इस गीत को सुनने पर विवश कर गया। पूरे बोल सुन कर लगा कि इरशाद भी गीतों को चटपटा बनाने के गुर सीख चुके हैं। जान लीजिए कि हीर की ऐसी हालत हुई क्यूँ? अब क्या करे हीर दिल का रोग लगा बैठी? पर जिससे दिल लगा उससे उचित प्रतिकार नहीं मिला। हाँ कुछ साथी जरूर मिले उसे इस बीच। पर उनका साथ हमेशा का तो था नहीं। इस गीत में नक्काश अज़ीज के साथ मीकाकी आवाज़ बहुत फबी है। रहमान ने हर पंक्ति के साथ हाय जी होए जी का जो मिश्रण किया है वो गीत के आनंद को बढ़ा देता है। अंत का संगीत संयोजन तो आपको अपनी जगह से हिला देगा ही। तो आइए इस गीत के बोलों के साथ एक बार और झूम लीजिए 06-Heer To Badi Sad Hai CD MISC-20160131 Track#06 5:26 TAMASHA-2015; Mika Singh, Nakkash Aziz; A.R.Rahman; Irshad Kamil वार्षिक संगीतमाला 2015 पॉयदान # 22 : तू जो है तो मैं हूँ, यूँ जो है तो मैं हूँ Tu Jo Hai वार्षिक संगीतमाला के पिछले मस्ती भरे गीतों से उलट बाइसवीं पॉयदान का गीत ले चल रहा है आपको विशुद्ध रोमांटिक माहौल में। ये गीत है इमरान हाशमी की फिल्म मिस्टर X का और इसे अपनी आवाज़ दी है अंकित तिवारी ने। अंकित तिवारी को आज की युवा पीढ़ी खूब प्यार देती है। क्यूँ ना दें भला ? आशिकी 2 के उन के लव एन्थम सुन रहा है ना तू को सारे देश ने कई कई बार सुना था। भक्ति संगीत से जुड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बीच कानपुर की गलियों से निकला ये युवक इतनी जल्दी देश का रॉकस्टार बन जाएगा, किसने सोचा था? मिस्टर एक्स का ये गीत दिल को सुकून पहुँचाने वाला एक रूमानी गाना है। अंकित ने पूरे गीत में गिटार का अच्छा इस्तेमाल किया है। इस गीत के बोल लिखे हैं नवोदित युवा गीतकार मोहनीश रज़ा ने और फिल्मी कैरियर में ये उनकी शुरुआत है । इस गीत मैं उनकी लिखी ये पंक्ति मुझे खास प्यारी लगीं..तू मेरे चेहरे पे है, राहत सा जो ठहरा हुआ...मैं भी तेरे हाथों में, क़िस्मत सा हूँ, बिखरा हुआ.. वाह जी लिखते रहिए यूँ ही। अंकित तिवारी से तो इस गीतमाला में आगे भी मुलाकात होगी। अभी तो सुन लीजिए ये प्यारा सा नग्मा.. 07-Tu Jo Hai To Mei Hoon CD MISC-20160131 Track#07 4:55 MR. X-2015; Ankit Tiwari; Jeet Ganguly; Monish Raza ताजा-सुरताल... There are good expectations from the music of Airlift. Though the film is basically a thrilling emotional drama and is a plot based affair, something that doesn't quite necessitate good space for music, there are various other factors that make one believe that composer Amaal Malik and lyricist Kumaar (along with Ankit Tiwari chipping in as a guest) would have something interesting to offer. First and foremost, it is an Akshay Kumar starrer which sets the stage for good music. Moreover, music company T-Series is one of the producers of the film. Also, Nikhil Advani has time and again ensured wonderful music for his films. We bring you “Mera Nachan Nu’. The manner in which 'Mera Nachan Nu' begins, it lends an impression of a situational number. Good credit to the musical team here that ensures repeat hearing even for this situational, courtesy the manner in which it has been orchestrated and sung. While Divya Kumar takes the lead, Amaal Mallik and Brijesh Shandilya contribute well to make this Punjabi track present the on-screen situation quite well. Yet another song that reminds one of Lakshmikant-Pyaarelal style of composition, this one is about hundreds of Indians who are celebrating the evacuation made possible by Akshay. 08-Mera Nachan Nu CD MISC-20160131 Track#08 3:44 AIRLIFT-2016; Amaal Mallik, Divyakumar, Brijesh Shandilya; Amaal Mallik; Kumaar THE END समाप्त
Mithhi Mithhi Baaton Se Bachna Zara
Lata Mangeshkar; Dattaram; Hasrat Jaipuri - QAIDI NO. 911-1959
Haath Seene Pe Jo Rakh Do
Noor Jehan, G.M.Durani; Pandit Amarnath; Aziz Kashmiri - MIRZA SAHIBAN-1947
Chhedi Maut Ne Shehnaai
Asha Bhosle; Anil Biswas; Majrooh - HEER-1956
Mein To Har Mod Pe Tujhko Doonga Sada
Mukesh; Sapan-Jagmohan; Naqsh Lyaalpuri - CHETNA-1970
Koi Chupke Se Aake
Geeta Dutt; Kanu Roy; Kapil Kumar - ANUBHAV-1971
Heer To Badi Sad Hai
Mika Singh, Nakkash Aziz; A.R.Rahman; Irshad Kamil - TAMASHA-2015
Tu Jo Hai To Mei Hoon
Ankit Tiwari; Jeet Ganguly; Monish Raza - MR. X-2015
Mera Nachan Nu
Amaal Mallik, Divyakumar, Brijesh Shandilya; Amaal Mallik; Kumaar - AIRLIFT-2016 New
Interactive CKCU
Asleem
Jata mangesvr

2:15 PM, August 4th, 2018